हिन्दू संस्कृति में ऐसे तो सभी पर्व और त्योहार मनाने की अलग-अलग परंपरा है, लेकिन बिहार और झारखंड में भैयादूज के दिन भाइयों की मंगलकामना के लिए गोधन कूटने की अनोखी परंपरा है।कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाए जाने वाले पर्व भैयादूज का दिन इन क्षेत्रों में 'गोधन' के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन बहन अपने भाइयों को 'शाप' (श्राप) देकर उनकी मंगलकामना करती हैं। मान्यता है कि इस शाप से भाइयों को मृत्यु का डर नहीं होता।बिहार और झारखंड में गोधन के मौके पर बहन द्वारा भाइयों को जी भर कर कोसा जाता है और गालियां दी जाती है, यहां तक की भाइयों की मृत्यु हो जाने का भी शाप दिया जाता है। इस क्रम में 'रेंगनी' (एक प्रकार का पौधा) के कांटों को बहनें अपनी जीभ में चुभाती हैं। इस क्रिया को 'शापना' कहा जाता है।इस पर्व में कई महिलाएं एक ही स्थान पर एकत्रित होकर गोधन कूटती हैं। गोधन पर्व करने वाली सभी उम्र की महिलाएं होती हैं। इस दिन मोहल्ले में एक घर के बाहर महिलाओं द्वारा सामूहिक रूप से गोबर से चौकोर आकृति बनाई जाती है, जिसमें यम और यमी की गोबर की ही प्रतिमा बनाई जाती है। इसके अलावा सांप, बिच्छु आदि की आकृतियां भी बनाई जाती हैं। प्रारंभ में वहां एकत्र हुई मोहल्ले की महिलाएं इसकी पूजा करती हैं और फिर इन्हें मूसल या डंडे से कूटा जाता है।गोधन पर्व करने वाली महिलाओं ने बताया ''इस दौरान इस आकृति के पास चना, ईंट, नारियल, सुपारी और वह कांटा जिसे अपने जीभ में चुभाकर भाइयों को कोसा गया है, भी रख दिया जाता है। इस अनोखी परंपरा को ही गोधन कूटना कहा जाता है। इस दौरान महिलाएं गीत और भजन भी गाती हैं।''बहनें इस कूटे हुए चना को वहां से निकाल लेती हैं और अपने-अपने भाइयों को तिलक लगाकर इसे खिलाती हैं। इस दिन भाइयों द्वारा बहन को उपहार देने की भी परंपरा है। महिलाओं का कहना है कि यह परंपरा काफी पुरानी है, जिसे परंपरानुसार पूरी आस्था के साथ मनाया जाता है। इस परंपरा के पीछे मान्यता है कि द्वितीया के दिन भाइयों को गालियां और शाप देने से उन्हें यम (यमराज) का भी भय नहीं होता । गोधन को यम द्वितीया भी कहा जाता है।किवंदंतियों के मुताबिक, प्राचीन काल में एक राजा के पुत्र की शादी थी इस मौके पर राजा ने अपनी विवाहित पुत्री को भी बुलाया था। भाई-बहन में अपार स्नेह था। जब बहन भाई की बारात में शामिल होने जा रही थी तब उसने आम लोगों को यह कहते सुन ली कि राजा की पुत्री ने अपने भाई को कभी गाली नहीं दी है, जिस कारण वह बारात के दौरान ही मर जाएगा।बारात जाने के रास्ते में बहन ने अपने भाई को खूब गालियां दी और रास्ते में जो भी सांप-बिच्छु दिखलाई दी उसे वह मारते चली गई और आंचल में डालती चली गई। जब वह घर लौटी तो उसके भाई के प्राण लेने के लिए यमराज उनके घर आए हुए थे, परंतु जब भाई-बहन के प्रेम को यमराज ने देखा तब वह बिना प्राण लिए वापस यमपुरी लौट गए। कहा जाता है तभी से यम द्वितीया के दिन बहन द्वारा भाई को शाप देने की परंपरा शुरू हुई।
#अनूप नारायण सिंह संस्कृति में ऐसे तो सभी पर्व और त्योहार मनाने की अलग-अलग परंपरा है, लेकिन बिहार और झारखंड में भैयादूज के दिन भाइयों की मंगलकामना के लिए गोधन कूटने की अनोखी परंपरा है।कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाए जाने वाले पर्व भैयादूज का दिन इन क्षेत्रों में 'गोधन' के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन बहन अपने भाइयों को 'शाप' (श्राप) देकर उनकी मंगलकामना करती हैं। मान्यता है कि इस शाप से भाइयों को मृत्यु का डर नहीं होता।बिहार और झारखंड में गोधन के मौके पर बहन द्वारा भाइयों को जी भर कर कोसा जाता है और गालियां दी जाती है, यहां तक की भाइयों की मृत्यु हो जाने का भी शाप दिया जाता है। इस क्रम में 'रेंगनी' (एक प्रकार का पौधा) के कांटों को बहनें अपनी जीभ में चुभाती हैं। इस क्रिया को 'शापना' कहा जाता है।इस पर्व में कई महिलाएं एक ही स्थान पर एकत्रित होकर गोधन कूटती हैं। गोधन पर्व करने वाली सभी उम्र की महिलाएं होती हैं। इस दिन मोहल्ले में एक घर के बाहर महिलाओं द्वारा सामूहिक रूप से गोबर से चौकोर आकृति बनाई जाती है, जिसमें यम और यमी की गोबर की ही प्रतिमा बनाई जाती है। इसके अलावा सांप, बिच्छु आदि की आकृतियां भी बनाई जाती हैं। प्रारंभ में वहां एकत्र हुई मोहल्ले की महिलाएं इसकी पूजा करती हैं और फिर इन्हें मूसल या डंडे से कूटा जाता है।गोधन पर्व करने वाली महिलाओं ने बताया ''इस दौरान इस आकृति के पास चना, ईंट, नारियल, सुपारी और वह कांटा जिसे अपने जीभ में चुभाकर भाइयों को कोसा गया है, भी रख दिया जाता है। इस अनोखी परंपरा को ही गोधन कूटना कहा जाता है। इस दौरान महिलाएं गीत और भजन भी गाती हैं।''बहनें इस कूटे हुए चना को वहां से निकाल लेती हैं और अपने-अपने भाइयों को तिलक लगाकर इसे खिलाती हैं। इस दिन भाइयों द्वारा बहन को उपहार देने की भी परंपरा है। महिलाओं का कहना है कि यह परंपरा काफी पुरानी है, जिसे परंपरानुसार पूरी आस्था के साथ मनाया जाता है। इस परंपरा के पीछे मान्यता है कि द्वितीया के दिन भाइयों को गालियां और शाप देने से उन्हें यम (यमराज) का भी भय नहीं होता । गोधन को यम द्वितीया भी कहा जाता है।किवंदंतियों के मुताबिक, प्राचीन काल में एक राजा के पुत्र की शादी थी इस मौके पर राजा ने अपनी विवाहित पुत्री को भी बुलाया था। भाई-बहन में अपार स्नेह था। जब बहन भाई की बारात में शामिल होने जा रही थी तब उसने आम लोगों को यह कहते सुन ली कि राजा की पुत्री ने अपने भाई को कभी गाली नहीं दी है, जिस कारण वह बारात के दौरान ही मर जाएगा।बारात जाने के रास्ते में बहन ने अपने भाई को खूब गालियां दी और रास्ते में जो भी सांप-बिच्छु दिखलाई दी उसे वह मारते चली गई और आंचल में डालती चली गई। जब वह घर लौटी तो उसके भाई के प्राण लेने के लिए यमराज उनके घर आए हुए थे, परंतु जब भाई-बहन के प्रेम को यमराज ने देखा तब वह बिना प्राण लिए वापस यमपुरी लौट गए। कहा जाता है तभी से यम द्वितीया के दिन बहन द्वारा भाई को शाप देने की परंपरा शुरू हुई।
#अनूप नारायण सिंह