भारत के अधिकतर राज्यों में दीपावली (diwali) की अमावस्या पर देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करते हैं लेकिन पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम में इस अवसर पर मां काली (maa kali ki puja) की पूजा होती है। यह पूजा अर्धरात्रि में की जाती है। आखिर काली पूजा क्यों और कैसी होती है, जानिए महत्व।राक्षसों का वध करने के बाद भी जब महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ तब भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए। भगवान शिव के शरीर स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया। इसी की याद में उनके शांत रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई जबकि इसी रात इनके रौद्ररूप काली की पूजा का विधान भी कुछ राज्यों में है।दुष्टों और पापियों का संहार करने के लिए माता दुर्गा ने ही मां काली के रूप में अवतार लिया था। माना जाता है कि मां काली के पूजन से जीवन के सभी दुखों का अंत हो जाता है। शत्रुओं का नाश हो जाता है। कहा जाता है कि मां काली का पूजन करने से जन्मकुंडली में बैठे राहु और केतु भी शांत हो जाते हैं। अधिकतर जगह पर तंत्र साधना के लिए मां काली की उपासना की जाती है।
कैसे होती है काली पूजा?
1. दो तरीके से मां काली की पूजा की जाती है, एक सामान्य और दूसरी तंत्र पूजा। सामान्य पूजा कोई भी कर सकता है।
2. माता काली की सामान्य पूजा में विशेष रूप से 108 गुड़हल के फूल, 108 बेलपत्र एवं माला, 108 मिट्टी के दीपक और 108 दुर्वा चढ़ाने की परंपरा है। साथ ही मौसमी फल, मिठाई, खिचड़ी, खीर, तली हुई सब्जी तथा अन्य व्यंजनों का भी भोग माता को चढ़ाया जाता है। पूजा की इस विधि में सुबह से उपवास रखकर रात्रि में भोग, होम-हवन व पुष्पांजलि आदि का समावेश होता है।