महापर्व छठ (Chhath Puja) पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार (Bihar) और झारखंड (Jharkhand) का मुख्य पर्व है. छठ पूजा के दौरान सूर्य देवता और उनकी बहन छठी मईया की भक्ति, पवित्रता और सादगी के साथ पूजा की जाती है. पूजा का आरंभ हां नहाय-खाय से होती है जो छठ का पहला दिन होता है. जबकि दूसरे दिन खरना (Kharna) मनाया जाता है. आज खरना है. खरना के दिन व्रती पूरा दिन व्रत रखते हैं और शाम को मिट्टी के चूल्हे पर गुड के खीर का प्रसाद बनाते हैं. शाम को पूजा संपन्न होने के बाद इस गुड़ की खीर को प्रसाद के रूप व्रती ग्रहण करता है और इसे प्रसाद के रूप में घर परिवार के सदस्यों में बांटा जाता है. इसके बाद अगले दिन घाट पर जाने की तैयारी शुरू होती है.
खरना के बाद सूर्य को दिया जाता है अर्घ्य
खरना के बाद यानी अगले दिन सूर्योदय होने से पहले भक्त घाट पर पहुंचते हैं और व्रती सारे सामान के साथ यहां सूर्यास्त का इंतजार करते हैं. घाटों पर रौनक देखते बनती है. व्रती नदी, तालाब आदि में डुबकी लगाकर सूर्य के डूबने का इंतजार करते हैं और घर परिवार की महिलाएं सूरज देव के डूबने के इंतजार में सूर्य देव और छठी मइया के गीत आदि गाती हैं. जब सूर्य डूबने लगता है तो व्रती पीतल के कलशी में दूध और जल से सूर्य को अर्घ देते हैं और प्रसाद आदि चढाते हैं.
पौराणिक कथाओं के मुताबिक छठी मैया को ब्रह्मा की मानसपुत्री और भगवान सूर्य की बहन माना गया है. छठी मैया निसंतानों को संतान प्रदान करती हैं. संतानों की लंबी आयु के लिए भी यह पूजा की जाती है. वहीं यह भी माना जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे का वध कर दिया गया था. तब उसे बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा को षष्ठी व्रत (छठ पूजा) रखने की सलाह दी थी