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आंवला नवमी कल, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि व महत्व

संवाद 
हिंदू पञ्चाङ्ग के अनुसार प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी,आंवला नवमी के नाम से प्रचलित तिथि को पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मनाया जाने वाला विशेष दिवस के स्वरूप में जानते हैं।
 वस्तुतः इस वर्ष बुधवार 2 नवम्बर को मनाया जाएगा।
 अक्षय नवमी व्रत ,पुराणों के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आवंले के पेड़ पर निवास करते हैं।
 इस दिन भगवान विष्णु के पूजन का भी विधान है। 
आंवला नवमी पर आंवले के वृक्ष के पूजन का विशेष महत्व है। 
साथ ही पुत्र रत्न की प्राप्ति हेतु इस नवमी पूजन का विशेष महत्व है। 
इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा-अर्चना कर दान-पुण्य करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
 अन्य दिनों की तुलना में नवमी पर किया गया दान-पुण्य कई गुना अधिक लाभ दिलाता है।
जिसका क्षय न हो उसी को अक्षय नवमी कहते हैं।
 उक्त बातें आयुष्मान ज्योतिष परामर्श सेवा केन्द्र के संस्थापक साहित्याचार्य ज्योतिर्विद आचार्य चन्दन तिवारी ने बताया कि कार्तिक शुक्ल नवमी अक्षय नवमी भी कहलाती है। इस दिन स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्न आदि के दान से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। 
इसमें पूर्वाह्न व्यापनि तिथि ली जाती है।
इस दिन क्या करें :- 
                          आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में बैठकर पूजन कर उसकी जड़ में दूध देना चाहिए। 
 इसके बाद अक्षत, पुष्प, चंदन से पूजा-अर्चना कर और पेड़ के चारों ओर कच्चा धागा बांधकर कपूर, बाती या शुद्ध घी की बाती से आरती करते हुए सात बार परिक्रमा करनी चाहिए तथा इसकी कथा सुनना चाहिए। 
भगवान विष्णु का ध्यान एवं पूजन करना चाहिए। 
 पूजा-अर्चना के बाद आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाना चाहिए तथा चावल, दाल,आंवले की चटनी,खीर, पूड़ी, सब्जी और मिष्ठान आदि का भोग लगाया जाता है। 
  ऐसी मान्यता है कि आंवला पेड़ की पूजा कर 108 बार परिक्रमा करने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होतीं हैं। 
कई धर्मप्रेमी तो आंवला पूजन के बाद पेड़ की छांव पर ब्राह्मण भोज भी कराते है।
 इस दिन कई महिलाएं जहां आंवले का वृक्ष हो, वहां जाकर वे पूजन करने बाद वहीं प्रसाद ग्रहण करती हैं।

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