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आखिर क्यों हिंदू विवाह में लिए जाते हैं सात फेरें

संवाद

हिंदू धर्म से अलग कई धर्म ऐसे हैं जिनमें शादी दो लोगों के बीच सिर्फ एक समझौता होती है और इसको परिस्थितियों के आधार पर तोड़ा भी जा सकता है, लेकिन हिंदू धर्म में सात फेरे से पूर्ण होने वाला यह बंधन सात जन्मों तक जुड़े रहने का वचन देता है. हिंदू धर्म में विवाह वर और वधू समेत दोनों पक्षों के परिजनों की सहमति लिए जाने की प्रथा होती है. हिंदू विवाह प्रथा में पति-पत्नी के बीच शारीरिक और आत्मिक संबंध होता है जो अत्यंत पवित्र माना जाता है.हिंदू धर्म में विवाह से पहले लड़के-लड़की की कुंडली और गुणों को मिलाने की प्रथा होती है. हिंदू धर्म में 16 संस्कारों का भी बड़ा महत्व है. यही, वजह है कि हिंदू विवाह प्रथा में जब तक सात फेरे नहीं हो जाते तब तक विवाह संपूर्ण नहीं माना जाता है. विवाह में वर-वधू के सात फेरे लेने की प्रक्रिया को 'सप्तपदी' भी कहा जाता है. शादी के मंडप में सात वचनों के साथ सात फेरे पूरे किए जाते हैं. प्रत्येक फेरे का वचन बहुत महत्व रखता है जो वर-वधू को जीवनभर साथ निभाने का वादा करते हैं.भारतीय संस्कृति में संख्या 7 मनुष्य के जीवन के लिए बहुत अहम होता है. इंद्रधनुष के 7 रंग, संगीत के 7 सुर, सूर्य के 7 घोड़े, मंदिर या मूर्ति की 7 परिक्रमा, 7 समुद्र, 7 चक्र, 7 ग्रह, 7 लोक, 7 तारे, 7 तल, 7 दिन, 7 द्वीप और 7 ऋषि का वर्णन किया जाता है. जीवन की क्रियाएं 7 होती हैं और ऊर्जा के केंद्र भी 7 होते हैं. सबसे अहम हिंदू धर्म में शादी का सीजन भी 7 महीने तक चलता है जिसमें अक्टूबर-नवंबर से शुरू होकर जून तक विवाह किए जाते हैं.7 फेरों या सप्तपदी में पहला फेरा खाने-पीने की व्यवस्था, दूसरा फेरा संयम और शक्ति संचय के लिए, तीसरा फेरा धन की व्यवस्था के लिए, चौथा फेरा आत्मिक सुख-शांति देता है. पांचवां फेरा पशुधन संपदा के लिए, छठा फेरा हर ऋतु में रहन-सहन के लिए और 7वें व अंतिम फेरे में वधू अपने वर का अनुगमन कर हमेशा साथ चलने और जीवन के हर सुख-दुख में सहयोग करने का अटूट वचन लेती है. 'मैत्री सप्तदीन मुच्यते' इसका अर्थ है कि सिर्फ 7 कदम साथ चलने से ही दो अजनबियों में भी मैत्री भाव पैदा होने लगता है.

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