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लोकगायिका से,अभिनेत्री बनने की संजना की कहानी

अनूप नारायण सिंह 

आखिरकार पितृसत्तात्मक समाज की ताना-बाना को तोड़कर, ग्रामीण अंचल और महंत परिवार की एक बेटी ने, विपरित परिस्थितियों में लंबे संघर्षों के तत्पश्चात् अपने सपनों को आकार और साकार करने में, बड़ी जीत हासिल कर ही ली। हां,भाई मैं उसी मशहूर भोजपुरी लोक गायिका और सुरीली आवाज की मल्लिका सुश्री संजना राज़ की बात कर रहा हूं,जो गोपालगंज की एक छोटी-सी सी गांव भटुआ बाजार से, काफ़ी जद्दोजहद के तत्पश्चात् बाहर निकलर, आज़ भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के रूपहले पर्दे पर,एक संजीदा और सशक्त अभिनेत्री के रूप में, अपने जीवन की नई पारी खेलने जा रही है। इसलिए उनके संघर्षों पर चर्चा इसी लेख में आगे करें उसके पहले ,उनके बड़े सपने साकार होने के उपलक्ष्य पर, उन्हें हार्दिक बधाई एवं ढेर सारी शुभकामनाएं। हमरा पूर्ण भरोसा, विश्वास आरू उम्मीद बा की, लोकगायिका सुश्री संजना राज़ के जीवन की, ई नईका पारी में भी,उनखा के आपन श्रोता,दर्शक,आऊर भोजपुरिया समाज के लोगन खुब प्यार,दु्लार,स्नेह आऊर आशीर्वाद देहब जा। वेलेंटाइन डे के शुभ अवसर पर, बिहार के सिनेमाघरों में सुश्री संजना राज़ की फिल्म "सैंया है अनाड़ी" रिलीज होखी, भोजपुरिया लोगन और समस्त बिहारी लोगन से,एगो हाथ जोड़ के निहोरा बा, अपनों देखीं और पूरे परिवारों के देखाईबजा, काहे से कि एगो गांव के बेटी के मनोबल और संबल के बढ़ावे के बा।एगो कलाकार के सबसे बड़का पुंजी होला,उनका के श्रोता,दर्शक और प्रशंसक,लोगन सब जेतना प्यार, दुलार,स्नेह और आशीर्वाद देहब,कलाकारण सबके कला में उतने निखार आई और लोगन सबके इतने उम्दा प्रदर्शन के देखे के मिली। "सैंया है अनाड़ी'" जिस प्रोटक्शन की मुवी है कि ,उसकी सारी मुवी पारिवारिक, समाजिक और जन सरोकारों से संबंधित विषयों पर केन्द्रीत पुर्णत:अश्लील मुक्त ,एक समाजिक ड्रामा होगा,ऐसी उन्होंने प्रतिबद्धता ज़ाहिर की, इसलिए समाज को ऐसी प्रयासों में अवश्य सहयोग करना चाहिए, ताकि भोजपुरिया समाज पर, अश्लीलता परोसने का विगत वर्षों में जो ठप्पा लगा है, उससे बाहर निकलकर , मनोरंजन का एक मजबूत स्वस्थ्य परम्परा स्थापित की जा सके।इसी मूल भावनाओं के साथ आज़ "लाल चुनरिया वाली पे, दिल आया रे, से भोजपुरी फिल्म में, बतौर अभिनेत्री डेब्यू करने वाली, भोजपुरी की सुप्रसिद्ध लोकगायिका सुश्री संजना राज़ पाण्डेय जी की दुसरी फिल्म "सैंया है अनाड़ी" की ट्रेलर , आज उस फिल्म की प्रोडक्शन कंपनी B4U ने ,वसन्त पंचमी के शुभ अवसर पर जारी कर,फिल्म वेलेंटाइन डे पर १४ फरवरी को पूरे बिहार में प्रर्दशित करने की घोषणा की है।
                                      बहरहाल,अब कुछ बातें लोकगायिका से अभिनेत्री बनी सुश्री संजना राज़ की संघर्षों की कहानी की। वैसे हम सभी जानते हैं कि हमारे देश की पूरा हिंदी पट्टी का इलाका आज़ भी अर्द्धसामंती व्यवस्था की मानसिकता से ग्रस्त है और ख़ासकर ग्रामीण अंचल तो जैसे आज़ भी सामंतवादी विचारों का मजबूती से केन्द्र बना हुआ है, इसके अन्तर्गत वहां के लोगों का आचार-विचार , रहन-सहन, भेद-भाव, छुआछूत,उंच-नीच, दकियानूसी परम्परा ,संस्कार, रीति-रिवाज,शोषण और अत्याचार, जूल्मों-सितम सबकुछ प्रमुखता से सजीव है। पितृसत्तात्मक समाजिक संरचना की एक बहुत बड़ी कोढ़ है, सामंतवादी व्यवस्था और उसके आचार-विचार, जिसके सबसे ज्यादा शिकार समाज की महिलाएं होती हैं, चाहे किसी वर्ग और जाति की हों। ब्राह्मणवाद की इस जकड़न में सबसे ज्यादा महिलाओं पर ही पाबंदीयां होती है।उसकी शिक्षा-दीक्षा,रहन-सहन,कला, रोजगार के अवसर और उसके सपनों का आकार सबकुछ उसके दायरे में जबतक होता है,सही माना जाता है,अन्यथा उन पर बहुतेरे पाबंदीयों की बौछार में, उनके सपने चकनाचूर होती चली जाती है, बहुत कम महिलाएं इस दुस्साहस से लड़कर अपने सपनों को साकार कर पातीं हैं। ऐसे ही एक महंत ब्राह्मण परिवार में जन्मी, पली-बढ़ी, बिहार की गोपालगंज जिला की छोटी-सी गांव "भटुआ बाजार" की संजना राज़ अपने परिवार और समाज से मुठभेड़ करती, अपनी सपनों को साकार करने में, महती सफलता हासिल की हैं। उनके पिता उन्हें डाक्टर, इंजीनियर बनाना चाहते थे,पर उनका सपना अभिनेत्री बनने का था। उन्होंने अपने पिता के लाख विरोध के बावजूद संगीत और अभिनय को, अपने जीवन का मुख्य लक्ष्य बनाईं। उन्हें इस कार्य में,अपनी माता को छोड़कर, परिवार के किसी अन्य सदस्यों का, कोई खास सहयोग नहीं मिला। अकेले ही वे अपने सपनों को साकार करने के लिए,घर की चारदीवारी को लांघती हुई, पहले लोकगायिका के रूप में और अब एक अभिनेत्री के रूप में अपने को स्थापित करतीं हुई, यह साबित करने में सफल रही कि, " अगर इंसान अपने मक़सद को पूरा करने के लिए ठान लें,तो दुनिया में कोई भी ऐसा मुकाम नहीं है, जिसे हासिल नहीं की जा सकती।" आज़ उनके पिता सहित पूरा परिवार को, उनकी इस कामयाबी पर नाज़ है। बिहार की बेटी सुश्री संजना राज़ की इस संघर्षमय जीवन,जज्बा और कामयाबी पर, आज़ पूरे बिहार को खासकर ग्रामीण बिहार की बेटीयों को अभिमान है। मैं उनकी इस संघर्षपूर्ण जीवन और सफलता को सलाम करते हुए, उनके उज्जवल भविष्य की शुभकामना करता हूं।

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