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भाइयों के कल्याण के लिए बहनें मनाती हैं सामा-चकेवा का पर्व, यहां जानें- त्योहार से जुड़ी मान्यता

संवाद

बिहार के मिथिलांचल इलाके की अपनी खास लोक संस्कृति है. यहां के रीति-रिवाज, खान-पान और पर्व-त्योहार क्षेत्र को विशिष्ट पहचान दिलाते हैं. यहां के लोक उत्सवों में प्रमुख है- सामा चकेबा (Sama Chakeva) नामक त्योहार. सामा-चकेबा मिथिला का एक बहुत ही अनोखा त्योहार है. भाई-बहन के बीच के स्नेह और समर्पण को दर्शाने वाला यह त्योहार महापर्व छठ (Chhath Parv) के पारण के दिन यानि कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी से प्रारंभ होता है और कार्तिक पूर्णिमा (Karthik Purnima) तक चलता है. दूसरे शब्दों में कहें तो छठ पूजा के अंतिम दिन जब व्रती उदयमान सूर्य को अर्घ्य देकर प्रसाद ग्रहण करते हैं, उसी शाम से मिथिला क्षेत्र में सामा-चकेबा का त्योहार शुरू होता है. समयाभाव के चलते कई स्थानों पर अब यह त्योहार देवोत्थान एकादशी (Devothan Ekadashi) से शुरू होकर गंगा स्नान यानि कार्तिक पूर्णिमा तक हो रहा है.

सामा-चकेबा त्योहार में महिलाएं सात दिनों तक सामा-चकेबा, चुगला और दूसरी मूर्तियां बनाकर उन्हें पूजती हैं. लोक गीत गाती हैं और परंपरानुसार लोकमानस में प्रचलित सामा-चकेबा की कहानियां कहती हैं. त्योहार के अंतिम दिन यानि कार्तिक पूर्णिमा की रात में सामा को प्रतीकात्मक रूप से ससुराल विदा किया जाता है. पास के किसी खाली खेत में मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है. जिस तरह एक बेटी को ससुराल विदा करते समय उसके साथ नया जीवन शुरू करने हेतु आवश्यक वस्तुएं दी जाती हैं, उसी तरह से विसर्जन के समय सामा के साथ खाने-पीने की चीजें, कपड़े, बिछावन और दूसरी आवश्यक वस्तुएं दी जाती हैं. महिलाएं विदाई के गीत गाती हैं, जिसे समदाओन कहते हैं.
चुगला का किया जाता है मुंह काला
सामा-चकेबा यानि भाई-बहन के इस कथा संसार में एक चरित्र है चुगला. जैसा कि नाम से स्पष्ट है, वह चुगली करता है, झूठी बातें फैलाता है. उसी के चलते सामा को कठोर श्राप झेलना पड़ा. इसलिए इस त्योहार में चुगले का मुंह काला किया जाता है.

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