अनूप नारायण सिंह
तीन साल 45 दिन पहले विक्की और रेखा पूत के पांव पालने में देख कर खुशी से झूम उठे थे। साल बीता, खुशी और बढ़ गई, जब आयुष मां, मम, पा कहने लगा था। काफी होनहार था। जो चीज एक बार देखता, उसे दोहराने की कोशिश करने लगता। बोलने, चलने, कूदने, फांदने में पूरे दिन मगन रहने वाले आयुष का एक और स्वभाव चार महीने पहले देखने को मिला। रेखा ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया था। बहन के आगमन की खुशियां आयुष के चेहरे पर देखते बनती थी। वो समझदारी का परिचय देने लगा था। मां को तंग नहीं करता और पिता जो उसके लिए लाते, उसे बहन के लिए संजोय रखता। जिद भी कम करने लगा था। उसके बदलते स्वभाव को देख विक्की और रेखा हर रात सोचते, यही हमारे बुढ़ापे की लाठी बनेगा और परिवार को आर्थिक तंगी से बाहर निकलेगा। अब आयुष ए से एप्पल, बी से बॉल के साथ एक से 100 तक की गिनती भी सिख गया था। विक्की और रेखा ने तीन बसंत में आयुष के अंदर बड़ा बदलाव देखा, पर उसकी हाथ की बदलती रेखाएं नहीं देख पाए। आज से ठीक 45 दिन पहले आर्थिक परिशानियों के बीच आयुष का जन्मदिन मनाने के लिए ऑटो चालक पिता विक्की केक लेकर आए थे और जमापूंजी से मां रेखा ने उसे टी शर्ट खरीद कर दी थी। पूरा परिवार खुश था। तभी परिवार की खुशियां सिस्टम की भेंट चढ़ गई। एक करोड़ 94 लाख की लागत से बन रहे नाले में गिर कर आयुष मर गया।
ये हृदय विदारक घटना पटना नगर निगम क्षेत्र के वार्ड नंबर एक के राजीव नगर रोड नंबर 23 में हुई। एक करोड़ 94 लाख की लागत से तीन महीने में पूरा होने वाला नाला अब तक अधूरा है, जिसमें गिरने से आयुष की जान चली गई। यदि निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ था तो आसपास घेराबंदी होनी चाहिए थी। मगर, ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि शायद इससे अधिक का निर्माण करने और कराने की इच्छा न तो ठेकेदार की थी और न ही निगम प्रशासन की है। प्रशासन ने इसे आपदा मान कर चार लाख की पेशकश की है। ऐसी आपदाएं सिस्टम के सिपहसालारों पर क्यों नहीं आती? उनके बच्चे इन गड्ढों में क्यों नहीं गिरते? जिस दिन सिस्टम के एक भी करिंदे का बच्चा ऐसे गड्ढे में गिर कर मरा, उसी दिन सुधार की उम्मीद की जा सकती है।