किशनगंज का एक मुहल्ला है जहां ईरान से आये सैकड़ो परिवार करीब 150 वर्षो से रह रहे हैं ।इनके कुल खनदान के कुछ लोग मुजफ्फरपुर और राँची में भी रहते हैं लेकिन सबसे अधिक इनकी आबादी छतीसगंढ़ में हैं ।
इनके पूर्वज ईरान से घोड़ा बेचने भारत आते थे उस वक्त ना वीजा था ,ना पासपोर्ट कि जरूरत थी ।ना कोई सरहद था ना कोई सीमा, व्यापार करने वाले इसी तरह आया जाया करते थे इनके पूर्वज बिहार में सोनपुर और किशनगंज का खागरा मेला में घोड़ा बेचने आते थे उस दौरान कुछ लोग यहॉ रह गये इनके पार 1902 ई० का परमाना आज भी सुरक्षित है जो अंग्रेज द्वारा हर वर्ष व्यापार करने के लिए दिया जाता है बाद के दिनों में ये आंख देखने और पावर का चश्मा बनाना शुरु किया आज कल ये ज्योतिष का काम करते हैं हाथ देखते हैं और ग्रह से जुड़े पत्थर बेचते हैं जब से ये लोग घोड़ा बेचना छोड़कर चश्मा और पत्थर बेचने का काम शुरू किया तब से ये स्थायी रूप से अफगानिस्तान पाकिस्तान ,भारत और बर्मा में रहने लगे आज भी ये लोग आपस में फारसी में बोलते हैं लिखना नहीं आता ईरान में कहाँ से आये कब आये कुछ भी याद नहीं है इतने दिनों के बावजूद आज भी ईरानी लुक के लगते हैं इनके पास जो दस्तावेज है और पीढ़ी दर पीढ़ी से भारत और बिहार को लेकर जो कहानियाँ सुनाते आ रहे हैं उसके संकलन से आधुनिक बिहार का 400 वर्ष पूराना इतिहास को संकलित किया जा सकता है।सोनपुर और खागर मेले कि भव्यता इतनी बड़ी थी कि ईरान के लोग महिनों से इस मेले का इन्तजार करते थे ।