संवाद
उत्तर प्रदेश पुलिस की जांच में गलती की वजह से सात साल से जेल में बंद विष्णु नाम के एक बेगुनाह व्यक्ति के मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को मामले की जांच का निर्देश दिया है.
इस मामले में एनएचआरसी में सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट और मानवाधिकार कार्यकर्ता राधाकांत त्रिपाठी ने याचिका दायर की थी. इस केस की शुरुआत साल 2015 में उस वक़्त हुई जब 17 साल की एक लड़की ग़ायब हो गई.
लड़की के पिता ने एफ़आईआर दर्ज़ कराई. 17 फरवरी, 2015 को अलीगढ़ पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 363 (अपहरण) और 366 (शादी का झांसा देकर अगवा करने) के तहत केस दर्ज किया गया.
इसके बाद 24 मार्च, 2015 को एक लड़की का शव बरामद हुआ. ग़ुमशुदा लड़की के परिवारवालों ने शव की पहचान अपनी बेटी के रूप में की. लड़की के परिवारवालों ने विष्णु पर लड़की को अगवा करने का आरोप लगाया और कहा कि वो आख़िरी बार उसी के साथ देखी गई थी. इस केस में पुलिस ने हाथरस के रहने वाले विष्णु को गिरफ़्तार कर लिया.
पुलिस ने आईपीसी की धारा 302 के तहत मामला दर्ज किया और विष्णु पर सबूत नष्ट करने के भी आरोप लगाए. बाद में मालूम चला कि गुमशुदा हुई वो लड़की ज़िंदा है जिसकी हत्या के आरोप में विष्णु को गिरफ़्तार किया गया था.
एडवोकेट राधाकांत त्रिपाठी ने बीबीसी को बताया कि इस मामले में एक बेगुनाह व्यक्ति को अपनी ज़िंदगी के सात क़ीमती साल बिना किसी ग़लती के जेल में गुजारने पड़े. उसकी ज़िंदगी के सात साल कौन लौटाएगा. कोई नहीं लौटा सकता है. इसके लिए उसे वाजिब मुआवजा दिया जाना चाहिए.
मानवाधिकार आयोग ने इस मामले में यूपी पुलिस के डीजीपी को चार हफ़्तों के भीतर रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है.
एडवोकेट राधाकांत त्रिपाठी ने आरोप लगाया कि विष्णु जिस लड़की की हत्या के आरोप में बंद है, उसके बारे में बाद में पता चला कि लड़की जीवित है और हाथरस में अपने पति के साथ रह रही है और उसके दो बच्चे भी हैं.
विष्णु के परिवार ने इस मुद्दे को उठाया और उसकी रिहाई की मांग की. पुलिस ने मामले की दोबारा से जांच शुरू की. एडवोकेट त्रिपाठी ने बताया कि लड़की को हिरासत में ले लिया गया है.