जिंदगी में कई बार हम असफल हो जाते हैं और असफल होने के बाद कई लोग अपना रास्ता बदल लेते है, तो कुछ लोग चुनौतियों का सामना करते हुए उसी रास्ते पर चलते हैं। ऐसे भी सफल लोग कहते हैं सफलता या मंजिल सिर्फ उन्हीं को मिलती है, जो आखिर तक प्रयास करना नहीं छोड़ते। पढिए उन सक्सेस शख्सियत के बारे में बताएंगे, जिन्होंने अपनी लाइफ में कई उतार-चढ़ाव देखे, कई परेशानियां झेलीं, उसके बावजूद हार नहीं मानी और साथ मिलकर एक इंश्योरेंस कंपनी खड़ी कर हर उस युवा के लिए मिसाल कायम की, जो सच में अपनी लाइफ में कुछ करना चाहते हैं। संजीत मिश्रा से बातचीत में तीनों दोस्तों ने अपनी लाइफ के कई अनकहे किस्से बताए, जो सबको पढ़ना चाहिए।
तब मेरे पास काॅलेज फी भरने तक के
पैसे नहीं थे: सुशील अग्रवाल
एथिका इंश्योरेंस के फाउंडर व सीईओ सुशील अग्रवाल कहते हैं कि हम उस फैमिली से आते हैं, जहां बच्चों को 12-14 साल का होते ही गार्जियन दुकान पर बिठा देते हैं। बात 2008-09 की है। मेरे पापा आॅयल टरपेंटाइन मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी में काम करते थे और संडे को बुक स्टाॅल लगाते थे। एक संडे पापा के कहने पर मैं उनकी शाॅप पर गया, वहां पहुंचा तो मैं शाॅक्ड रह गया कि पापा फुटपाथ पर दुकान लगाए थे। हर संडे को वहां जाने लगा। यकीन नहीं करेंगे स्कूल टाइम में पढने में जितनी कम रूचि थी, बुक स्टाॅल पर बैठकर उतना ही इंटरेस्ट जग गया। रीडिंग हैबिट इतनी बढ़ गई कि घंटों-घंटे अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ने लगा।
स्कूल की पढ़ाई जैसे-तैसे करने के बाद इंजीनियरिंग में चले तो गए थे, पर फीस आदि के लिए हमारे पास उतने पैसे नहीं थे। एक बार का वाकया अचानक याद आ गया। मैं गवर्नमेंट काॅलेज से इंजीनियरिंग कर रहा था। एक बार काॅलेज की फीस भरने का लास्ट डेट नेक्स्ट डे था और मेरे पास पैसे ही नहीं थे। मुझे उदास देखकर मेरे प्रिंसिपल ने मुझसे पूछा कि क्या हुआ, मैंने बता दिया कि मेरे पास पैसे नहीं हैं फीस भरने के लिए। अगले दिन जब मैं काॅलेज आया तो आॅफिस में पता चला कि मेरा फीस भर दिया गया है। प्रिंसिपल का यह अहसान मैं जिंदगी भी नहीं चुका पाउंगा, बस इतना कह सकता हूं कि आज जो कुछ भी हूं, उसमें उनका बहुत बड़ा योगदान है।
कार बेचकर पूरे किए पैसे, तब जाकर
पूरा हुआ सपना: शरत रेड्डी
एथिका के फाउंडिंग डायरेक्टर शरत रेड्डी कहते हैं जब मैं आठवीं में पढ रहा था तभी मेरी मां कैंसर से चल बसी। किसी तरह पढाई की। आईटी रिसेशन के बाद भैया की जाॅब जाने के बाद फैमिली की स्थिति और खराब हो गई, जिसके बाद कई महीनों तक हमलोगों ने बन खाकर अपनी लाइफ गुजारी। किसी तरह छोटी मोटी जाॅब की, इस दौरान इंश्योरेंस के फील्ड में भी काम किया और फिर हम तीनों साथ हुए और आज यहां तक पहुंचे हैं।
हमलोगों को ज्यादा पैसे की जरूरत थी तो सुशील ने अपने रिलेटिव्स और जानने वालों से रूपए उधार लिए और मैंने अपनी आल्टो कार बेच दी। संदीप ने अपनी एक प्राॅपर्टी भी बेच दी, जिससे हमलोगों के पास 50 लाख जमा हो गए थे। अमूमन लाइसेंस मिलने में छह-सात महीने लग जाते हैं, पर हमें जल्दी मिल गया। और इस तरह से हम तीनों का सपना पूरा हुआ औरएथिका इंश्योरेंस ब्रोकिंग प्रा लि अपने रूप में आ गई। शरत कहते हैं कि आपको जानकर अच्छा लगेगा कि हमारी कंपनी को गूगल पर 4.9 की रेटिंग है। हमलोगों की पहली प्रायोरिटी है कि हम अपने कस्टमर्स को बेहतर से बेहतर सर्विस प्रोवाइड कराएं।
पापा के जाने के बाद इंश्योरेंस का
सही मतलब समझ पाया: संदीप मुक्का
एथिका के फाउंडिंग डायरेक्टर संदीप मुक्का कहते हैं कि जब मैं 17 साल का था तब मेरे फादर की डेथ हो गई, और उसके बाद फैमिली की रिस्पांसिबिलिटी मुझ पर आ गई। पहले पापा का हाॅलसेल मार्केटिंग का काम था, जो उनके बाद कुछ दिन मैंने किया पर मुझसे अच्छे से हो नहीं रहा था। मेरी मां ने भी कहा कि तुम बिजनेस मत करो कुछ पढ लो ताकि आगे कुछ बेहतर होगा। पापा ने कुछ एलआईसी पाॅलिसी ले रखी थी, उसके जाने के बाद हमलोगों को उससे हेल्प तो मिली ही, मेरा भी झुकाव इंश्योरेंस की तरफ होने लगा। मुझे लगा कि इंश्योरेंस वाकई बहुत अच्छी चीज है अगर उनका इंश्योरेंस नहीं हुआ होता तो हमलोग सड़क पर आ गए होेते।
पुराने दिनों को याद करते हुए संदीप कहते हैं मैंने जो फील किया है उसके बाद कह सकता हूं कि अगर मेरे पास इंश्योरेंस नहीं होता तो शायद मैं आज यहां नहीं होता। इंश्योरेंस ने मेरी लाइफ को एक दिशा दी। अब एथिका भी यही कोशिश कर रहा है कि हमारे साथ जो भी जुड़ रहे हैं, उन्हें उनकी जरूरत के समय पूरा सपोर्ट किया जाएगा। एथिका का ऐम ही है सबके चेहरे पर स्माइल लाना। मेरा मानना है कि क्लेम सैटलमेंट को कितने अच्छे से कंप्लीट कर सकते हैं। एथिका की हमेशा से कोशिश होती है कि कस्टमर्स का क्लेम ज्यादा से ज्यादा सैटल हो। यही कारण है कि एथिका का क्लेम सैटलमेंट रेशियो कई कंपनियों से बेहतर है, जो लोगों के विश्वास का ही नतीजा है।
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हैदराबाद के जहीराबाद में बन रहा वर्शिप
एथिका के सीईओ सुशील अग्रवाल हैदराबाद के जहीराबाद में एक प्रोजेक्ट तैयार करवा रहे हैं। पांच एकड़ के इस प्रोजेक्ट में आफिस, स्टूडियो, ओपन किचेन, सेलिब्रेशन स्पेस और काॅटेज हैं। यहां सोलर और विंड के जरिये पाॅवर सप्लाई किए जाएंगे। रेन वाटर को स्टोर किया जाएगा ताकि उसका यूज किया जा सके। कुछ जगह पर फल व सब्जियां भी उगाई जाएंगी, जो पूरी तरह से हर्बल होंगी। इस प्रोजेक्ट को बनाने का सबसे बड़ा उद्देश्य है कि लोग काम करने आएं और रिलैक्स होकर लाइफ को इंज्वाॅय करें।
क्या है एथिका इंश्योरेंस ब्रोकिंग
एथिका अभी जेनरल और लाइफ इंश्योरेंस के क्षेत्र में काम कर रही है। इंप्लाईज, हेल्थ इंश्योरेंस, लाइफ इंश्योरेंस। कंपनीज के लिए साइबर रिस्क, डेटा सिक्योरिटी आदि सभी तरह के इंश्योरेंस आॅफर करती है। एथिका के तीन जगह आॅफिसेज हैदराबाद, बेंगुलरू और हैदराबाद में हैं, पर देशभर में काम करती है। सुशील कहते हैं कि हमारी सर्विस बाकी कंपनीज से बहुत अच्छी हैं, तभी तो हमारे क्लाइंट ही दूसरे क्लाइंट को रेफर करती हैं। एथिका का अभी सालाना 70 करोड़ का टर्नओवर है, जो इस साल सौ करोड़ पार हो जाएगा।