बिहार में जाति आधारित गणना पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई होगी। याचिका में कहा गया है कि नीतीश सरकार का जातिगत गणना कराने का फैसला असंवैधानिक है। इसका अधिकार राज्य को नहीं बल्कि केंद्र सरकार को है। ऐसे में बिहार में जल रही जातीय जनगणना पर रोक लगाई जाए।
नालंदा जिले के रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अखिलेश कुमार की ओर से दो दिन पहले शीर्ष अदालत में यह जनहित याचिका दायर की गई। याचिकाकर्ता ने इस मुद्दे पर त्वरित सुनवाई की मांग की।
याची का कहना है कि कि बिहार सरकार ने 6 जून 2022 को जातिगण गणना कराने का नोटिफिकेशन जारी किया था, जो कि गलत और असंवैधानिक है।
दरअसल, याची के मुताबिक यह नोटिफिकेशन संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है। जातीय जनगणना का काम राज्य के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। इसे केवल केंद्र सरकार ही करा सकती है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट से नीतीश सरकार के जातिगत गणना कराने के नोटिफिकेशन को रद्द करने की मांग की गई है।
वहीं, बिहार सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि यह जातीय जनगणना नहीं बल्कि जाति और आर्थिक आधारित सर्वे है। बिहार में जाति आधारित गणना दो चरणों में पूरी की जानी है। पहला चरण 7 जनवरी से शुरू हो गया है, जो 21 तारीख तक चलेगा। इस दौरान मकानों की नंबरिंग की जा रही है। इसके बाद अप्रैल महीने में उन मकानों में रहने वाले लोगों की जातियों और अन्य जरूरी आंकड़े इकट्ठा किए जाएंगे।