आरक्षण नियमों की अनदेखी के आरोपों के बीच पिछले साल दिसम्बर में दो चरणों में नगर निकायों का चुनाव सम्पन्न हो गया। चुनाव के परिणाम भी तुरंत घोषित हो गए और चुने गये जनप्रतिनिधियों ने शपथ भी ले ली।
लेकिन, आरक्षण नियमों की अनदेखी का आरोप लगाकर कोर्ट में दायर किया गया मामला अब भी जिंदा है और आज सुप्रीम कोर्ट इस पर सुनवाई करने जा रहा है।ऐसे में कोर्ट में आसन्न सुनवाई को लेकर कई तरह की आशंका उठने लगी है कि सुनवाई में क्या होगा। क्या सुप्रीम कोर्ट आरक्षण की अनदेखी करने पर चुनाव को ही रद्द कर सकता है? या फिर अपेक्षित भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए अदालत नगर निकाय के बोर्ड कुछ ऐसे पद सृजित करने को कह सकता है, जिसके लिए चुनाव की जरूरत न पड़े, लेकिन हकदार समूहों की भागीदारी बढ़ जाए?अगर सुप्रीम कोर्ट चुनाव रद्द कर देता है, तो न केवल दोबारा करोड़ रुपए खर्च कर चुनाव कराना होगा बल्कि संसाधन भी जाया हो जाएगा, ऐसे में बिहार सरकार कभी नहीं चाहेगी कि दोबारा चुनाव कराने की नौबत आए।