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छाया घना कोहरा, कनकनी से काप रहा बिहार

संवाद 

बिहार में जनवरी के शुरुआती दौर में शीतलहर का कहर जारी रहने एवं तेजी से ठंड का प्रकोप बढ़ने से लगातार कई दिनों से पुरे जन जीवन पर ब्यापक असर पड़ा रहा है।नीले आसमान में घने कोहरा छाये रहने से गरीब किसान मजदूर तबके लोगों को रोजी रोटी पर भी संकट मंडराने लगा है।लोग ठंड बढ़ते ही देर सुबह तक जहा घरो में दुबके नजर आ रहे है वही शाम में भी जल्दी घर पहुचने को बेताब दिख रहे है।जबकि त्रिव गति से बढ़ रहे ठंड से लोग अपना दम तोडना भी शुरू कर दिया है तो कई लोग इसके चपेट में आकर विभिन्न अस्पतालों में इलाजरत है।लेकिन जिला प्रशासन लोगो के जानमाल एवं ठंड के प्रति कितना संवेदनशील है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कही भी चौक चौराहों पर सरकारी तौर पर आलवा की ब्यवस्था सुनिश्चित नही की गई है।
इस सिलसिले में अधिकारियों का कहना है कि अलाव की ब्यवस्था करने का आदेश आयेगा तभी की जायेगी।इससे जिले के विभिन्न शहर व बाजारों के नागरिकों में भारी आक्रोश है।शहर हो या गांव या फिर कस्बाई इलाका सभी जगह हाड़ कंपाने वाली ठंड व दिन में देर तक घने कोहरे,बर्फीली हवाओं तथा शीतलहर के जारी रहने से लोगो का हाल बेहाल हो जा रहा है।वही नित दिन लोगो की दिनचर्या गड़बड़ा सी गई है।इस ठंड से खासकर बच्चे ,बूढ़े के आलावा पशु पंक्षी भी प्रभावित है जहां ठंड की चपेट में आने से प्राइवेट व सरकारी अस्पतालों में नीत दिन इलाज के लिए लोग पहुच रहे है।सबसे विभत्स चेहरा शहर में स्थित झुंगी झोपडी लगाकर निवास कर रहे महादलित बस्ती की है जहां गरीब व निर्धन बच्चे गर्म कपड़ो के आभाव में सुबह और शाम गंदे और फटे कपड़े पहनकर कापते हुए मारे मारे फिर रहे है।जिन्हें सिर छुपाने के लिए न तो छत नसीब है और न ही बदन ढकने के लिए गर्म कपड़े मौजूद है।
एक टोली है भिखमंगो की जो जैसे तैसे अपनी हिसाब से जिंदगी जी रहे है।लेकिन जिला प्रशासन है कि कही भी चौक चौराहे पर कड़ाके के पड़ रहे ठंड के वावजूद अभी तक अलाव की कोई ब्यवस्था मुक़र्रर नही कर पायी है।यह दीगर बात है कि रिक्सा चालक ,मजदूर,तथा गरीब तबके के लोग जहां तहा टायर लकड़ी आदि जलाकर अलाव की ब्यवस्था कर ठंड भागने का प्रयास कर रहे है।घने कोहरे और सूर्य का दीदार कई दिनों से निकलने से लोग घरो में दुबकने को विवश हो गए है।साधन सम्पन लोग तो आराम से जीवन बीता रहे है पर गरीब साधनविहीन लोगो के लिए ठंड जान पर बन आई है।चिथड़ों में लिपटे हुए ठंड से कापते अपने बच्चों को देखकर गरीब माँ का कलेजा अक्सर रो पड़ता है।अपने तन का कपडा भी अपने बच्चों को दे देती है और इंतजार करती है ठंड का खत्म होने का।
सरकारी सहायता नगण्य है। अलाव की कोई ब्यवस्था नही होने से गरीब की आंखो किसी दानवीर या सरकारी सहायता की बाट जोह रही है कि शायद कुछ साधन मिल जाए और ठिठुरन दूर हो जाए।मौसम का मिजाज बदलने से गुरुवार और शुक्रवार का दिन वेहद ही खराब व ठंडा दिन रहा।क्योकि आंशिक तौर पर ही भगवान भास्कर का दीदार हो पाया।पूरे दिन नीले आसमान में उमड़ते घुमड़ते बदलो की आवजाही एवं घने कोहरे ही छाया रहा।जिसके कारण जनजीवन असतब्यस्त होता नजर आया।लोगो का मानना है कि यह सिलसिला अभी और कुछ दिन इसी तरह तक ऐसा ही बना रहेगा।हालांकि बढ़ते ठंड के मद्देनजर कई दानविरो ने हाथ बढ़ाया है और गरीब निर्धन तथा आशाहाय को कम्बल ओढ़कर ठंड से राहत देने कार्य किया जा रहा है।

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