सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में जातिगत जनगणना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई से इनकार कर दिया है. बिहार सरकार को राहत देते हुए जस्टिस भूषण आर गवई ने टिप्पणी की कि अगर जनगणना और सर्वेक्षण पर रोक लगाई गई तो सरकार कैसे तय करेगी कि आरक्षण कैसे प्रदान किया जाए?
कोर्ट ने 6 जून को राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना रद्द करने की मांग वाली तीनों याचिकाओं पर कहा कि पटना हाई कोर्ट जाइए.
याचिकाओं में कहा गया है कि जातिगत जनगणना का नोटिफिकेशन संविधान की मूल भावना के खिलाफ है. कोर्ट ने कहा कि जातिगत जनगणना के नोटिफिकेशन को रद्द करने की मांग वाली याचिकाएं पब्लिसिटी इंट्रेस्ट लिटीगेशन लगती हैं.
इसके बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि आप पहले पटना हाई कोर्ट क्यो नहीं गए? हाई कोर्ट भी इसे सुनने में सक्षम है. सीधे यहां आने का क्या मकसद है. आप याचिका वापस लेना चाहेंगे या हम इसे खारिज कर दें?
याचिकाकर्ताओं ने अर्जी वापस लेने पर हामी भरी तो सुप्रीम कोर्ट ने बिहार जातिगत जनगणना के खिलाफ दाखिल सभी तीन याचिकाओं को हाई कोर्ट जाने की लिबर्टी दे दी.
7 जनवरी से शुरू हो चुका है सर्वे
बिहार में सात जनवरी से जाति आधारित जनगणना की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. राज्य में यह सर्वे करवाने की जिम्मेदारी सरकार के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट (जीएडी) को सौंपी गई है.
सरकार मोबाइल फोन ऐप के जरिए हर परिवार का डेटा डिजिटली इकट्ठा करने की योजना बना रही है. सर्वे में शामिल लोगों को पहले ही आवश्यक ट्रेनिंग दे दी गई है. यह जनगणना दो चरणों में होगी. पहले चरण की जनगणना सात जनवरी से पटना से शुरू होगी.
इस दौरान वीआईपी इलाकों में घरों की गणना की जाएगी, जिनमें मंत्रियों, विधायकों के आवास शामिल होंगे. इनकी संख्या से जुटे आंकडे़ जुटाए जाएंगे. इसके अलावा हर परिवार के मुखिया और हर घर के सदस्यों के नाम का भी दस्तावेजीकरण किया जाएगा.
इस सर्वे में परिवार के लोगों के नाम, उनकी जाति, जन्मस्थान और परिवार के सदस्यों की संख्या से जुड़े सवाल होंगे. इसके साथ ही उनके आर्थिक स्थिति और सालाना आय से जुड़े सवाल भी होंगे.
दूसरे चरण की जनगणना एक अप्रैल से 30 अप्रैल तक होगी. इस दौरान जनगणना में शामिल लोग लोगों की जाति, उनकी उपजाति और धर्म से जुड़े डेटा जुटाएगी.
मई 2023 तक जनगणना पूरा करने का है लक्ष्य
राज्य सरकार ने मई 2023 तक जातीय जनगणना की प्रक्रिया पूरी करने का लक्ष्य रखा है. जिला स्तर पर सर्वे करने की जिम्मेदारी संबंधित जिला मजिस्ट्रेटों को दी गई है, जिन्हें इस काम के लिए जिलों में नोडल अधिकारी के तौर पर नियुक्त किया गया है.
सरकार जातीय जनगणना के लिए 500 करोड़ रुपये खर्च कर सकती है. इससे पहले पिछले साल जून में फैसला किया गया था कि जातीनय जनगणना फरवरी 2023 तक पूरी की जाएगी. लेकिन बाद में सर्वे के काम को पूरा करने की डेडलाइन तीन महीने बढ़ाकर मई 2023 तक कर दी गई.