अपराध के खबरें

बिहार नगर न‍िकाय चुनाव संबधित याचिका सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज

संवाद 

पिछले महीने बिहार में जो नगर निकाय चुनाव हुए, उसे लेकर संशय बरकरार है। आज सुप्रीम कोर्ट में इसपर फैसला सुनाया गया ।खबर आ रही है याचिका को खारिज कर दिया है। हालांकि 18 दिसंबर और 28 दिसंबर को चुनाव हो गया। 30 दिसंबर को इसके रिजल्ट भी आ गए। चुने गए जनप्रतिनिधियों ने शपथ लेकर अपने काम भी शुरू कर दिया है। लेकिन, आज चुनाव से संबंधित मामले की सुनवाई होनी है। इसमें सरकार की ओर से गठित अति पिछड़ा वर्ग आयोग की योग्यता पर फैसला होना है।

पटना हाईकोर्ट की तरफ से निकाय चुनाव पर रोक लगाने के बाद बिहार सरकार की तरफ से अक्टूबर में अति पिछड़ा वर्ग आयोग गठित किया गया। दो महीने के भीतर कमेटी अपनी रिपोर्ट सरकार को दी। इससे पहले ही मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी को डेडिकेडेट मानने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी सरकार उसी कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर राज्य निर्वाचन आयोग को चुनाव कराने की अनुशंसा कर दी। अनुशंसा मिलते ही निर्वाचन आयोग ने नए डेट की भी घोषणा कर दी गई है और चुनाव करा लिए गए। रिपोर्ट के बाद भी केवल चुनाव की डेट बदली, इसके अलावा कुछ नहीं बदला।

तब हाईकोर्ट ने कहा था कि अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के लिए 20% आरक्षित सीटों को जनरल कर नए सिरे से नोटिफिकेशन जारी करें। लेकिन निर्वाचन आयोग की तरफ से बस चुनाव की तिथि को बदला गया। इसके अलावा किसी तरह का कोई बदलाव नहीं किया गया है। न हीं आरक्षण की स्थिति में और न ही अलग से नोटिफिकेशन जारी किया गया है।

ईबीसी का गहन अध्ययन के बाद डेटा तैयार करना था। लेकिन इसके नाम पर बस खानापूर्ति की गई है। बिना डेटा के भी आरक्षण का दर 20% था और आरक्षण के बाद भी 20% भी रह गया। रिपोर्ट सरकार के पास से होते हुए निर्वाचन आयोग तक पहुंच गई है लेकिन, उसे अभी तक जारी नहीं किया गया है।

डेडिकेटेड कमीशन को राज्य के सभी नगर निकायों में अति पिछड़ा वर्ग के जातियों को डाटा कलेक्ट करना था। इसके साथ ही इन्हें पता लगाना था कि नगर पालिका की कुल जनसंख्या में पिछड़ों की संख्या कितनी है, यह कितना प्रतिशत होती है। साथ ही इनकी कुल जनसंख्या क्या है ये भी पता लगाना था। टोटल जनसंख्या के अनुपात के अनुसार उनका प्रतिनिधित्व है कि नहीं इसकी रिपोर्ट इन्हें सरकार को सौंपनी थी। इसमें यह भी निर्धारित करना था कि किसी मामले में आरक्षण अपर सिलिंग 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए ।

2010 में चुनाव में आरक्षण को लेकर के कृष्णमूर्ति केस चैलेंज हुआ था। केस इस ग्राउंड पर चैलेंज किया गया था कि बिना सर्वे कराए पूरे देश में सरकार द्वारा वोट बैंक बनाने के लिए चुनाव में आरक्षण दिया जा रहा। इस केस में फैसला ट्रिपल टेस्ट का आया। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद ट्रिपल टेस्ट को चुनाव में आरक्षण के लिए एक बड़ा पैमाना माना गया।

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

live