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पटना समेत 20 जिलों के पानी से कैंसर का खतरा:आर्सेनिक से हो रहा गॉल ब्लाडर कैंसर; 152 मरीजों पर वैज्ञानिकों ने किया शोध

संवाद 
पटना समेत 20 जिलों के जलस्रोतों में आर्सेनिक होना गॉल ब्लाडर कैंसर हाेने का एक मुख्य कारण है। महावीर कैंसर संस्थान और अनुसंधान केंद्र के रिसर्च में यह खुलासा हुआ है। संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. अरुण ने बताया कि यह शोध कार्य 14 मार्च को लंदन के नेचर जर्नल-साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुआ है। इसके मुताबिक, आर्सेनिक लाेगाें के शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के साथ जुड़ जाता है।

इसके बाद सिस्टीन, टॉरिन और चेनोडॉक्सिकोलिक एसिड जैसे अन्य यौगिकों के साथ मिलकर पित्ताशय की थैली तक पहुंच जाता। इसकी वजह से पित्ताशय की पथरी बनता है। लंबे समय तक इसका इलाज नहीं हाेने पर पित्ताशय की थैली के कैंसर रोग में तब्दील हाे जाता है। यह अध्ययन पित्ताशय की थैली के 152 रोगियों पर किया गया। उनके पित्ताशय की थैली में बहुत अधिक आर्सेनिक पाया गया।

इन जिलों में असर अधिक

इस अध्ययन में पित्ताशय की थैली की बीमारी से सबसे प्रभावित पटना, बक्सर, भोजपुर, सारण, वैशाली, सारण, समस्तीपुर, गोपालगंज, पश्चिम चंपारण, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया, किशनगंज, सहरसा, मधेपुरा, कटिहार, मुंगेर और भागलपुर काे पाया गया। इसके अलावा गंगा के मैदानी इलाकों में इस बीमारी का बोझ बहुत अधिक है।

रिसर्च टीम में शामिल विशेषज्ञ

महावीर कैंसर संस्थान के वैज्ञानिकों प्रोफेसर अशोक घोष, डॉ. अरुण कुमार, डॉ. मोहम्मद अली, डॉ. मनीषा सिंह, डॉ. घनीश पंजवानी, डॉ. प्रीति जैन, डॉ. अजय विद्यार्थी, टोक्यो विश्वविद्यालय से डॉ. मैको साकामोतो, कनाडा के सस्केचेवान विश्वविद्यालय के डॉ. सोम नियोगी, दिल्ली एम्स से डॉ. अशोक शर्मा, नीदरलैंड से संतोष कुमार, यूपीईएस विश्वविद्यालय से डॉ. ध्रुव कुमार, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया पटना से डॉ. अखौरी विश्वप्रिया, हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय से डॉ. रंजीत कुमार और पटना वीमेंस कॉलेज से डॉ. आरती कुमारी ने इस शोध कार्य में सहयोग किया।

भारत में दुनिया के 10% केस

वर्ष 2020 में दुनियाभर में कैंसर के 19,292,789 के केस मिले थे। इनमें 115,949 केस पित्ताशय की थैली के कैंसर के थे, जिनमें 84,695 की माैत हाे गई। भारत में वैश्विक पित्ताशय की थैली के कैंसर यानी गॉल ब्लाडर कैंसर के मामलों का 10 फीसदी और हर साल लगभग 10 लाख नए कैंसर के मामले होते हैं, जिसमें मृत्यु दर हर साल 33 फीसदी तक होती है। भारत में गॉल ब्लाडर कैंसर के सबसे अधिक केस उत्तरप्रदेश, बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम और दिल्ली में मिलते हैं।

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