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मेनार में होली पर दिखता है दिवाली सा नजारा, 400 साल से निभा रहे परंपरा...जानें क्या है खास

संवाद 

होली के मौके पर यूं तो देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग रीति-रिवाज से लोग त्यौहार मनाते हैं. कहीं रंगों की होली तो कहीं फूलों की होली देखने को मिलती है. लेकिन उदयपुर से 40 किलोमीटर दूर स्थित मेनार में होली के दिन दिवाली सा नजारा दिखाई देता है. यहां की होली अपने आप में ही अनूठी है. 

मेनार उदयपुर, मेनारिया ब्राह्मणों के गांव की होली का दृश्य है । यह होली महाराणा अमर सिंह जी के समय गांव के ही लोगों ने मुगल थाणे पर हमला कर मुगलों को मार कर मेवाड़ महाराणा को समर्पित किया और मेवाड़ को स्वतंत्र घोषित किया, उक्त घटना होली के दिन की हे। इस लिए मेनारिया ब्राह्मणों का यह गांव उसी दिन से आज तक यह होली इसी तरह मनाता आ रहा हे। जय मेवाड़। जय एकलिंग नाथजी।

मेनार में खेली जाने वाली होली रंग और फूलों की नहीं बल्कि पटाखे और गोला-बारूद की होती है.मुगलों की सेना को शिकस्त देने के उत्साह में पिछले 400 साल से मेनार में गोला-बारूद की होली खेली जाती है. इस बार ये होली 19 मार्च यानी कि जमराबीज पर खेली जाएगी. 

इस दिन शाम ढलने के साथ ही मेनार गांव में मेनारिया समाज के लोग पटाखों, गोला-बारूद के साथ होली खेलते हैं.

इतिहासकार बताते हैं कि पिछले 400 साल से इस परंपरा का निर्वहन बदस्तूर जारी है. दरअसल मुगलों की सेना को इस इलाके के रणबांकुरों ने अपने शौर्य और पराक्रम के बल पर शिकस्त दी थी. उसी खुशी में जमराबीज के दिन यहां की अनूठी होली मनाई जाती है.

शाम ढलने के साथ शुरू होता है उत्सव

मेवाड़ के मेनार मे इसी दिन हर वर्ष शाम ढलने के साथ ही गांव के अलग-अलग रास्तों से रणबांकुरे की टोलियां सेना के टुकड़ियों के वेश में गांव के मुख्य चौक में पहुंचती हैं. यहां बंदूक और बारूद की चिंगारियां उस दिन की याद ताजा कराती है. जब इस गांव और आसपास के इलाकों में रणबांकुरे ने मुगल आक्रांता और को धूल चटा दी थी. 

400 साल से चली आ रही इस परंपरा को अब बारूद की होली के नाम से भी पहचाना जाने लगा है.होली पर बच्चे भी दिखाते हैं करतबदूर-दराज से भी चले आतें हैं गांव के लोग
जमराबीज की पूरी रात मेनार गांव के रहने वाले मेनारिया समाज के लोग जमकर मस्ती करते हैं. शौर्य और पराक्रम के प्रति इस त्यौहार का आनंद लेते हैं. ऐसे में परंपरा का निर्वहन करने के लिए मेनारिया समाज का हर व्यक्ति अपने गांव लौट आता है. ऐसे में बच्चे बूढ़े और जवान सभी पारंपरिक वेशभूषा में सजधज कर शाम से ही मेनार गांव के बीच चौक में जमा होने लगते हैं. जैसे-जैसे अंधेरा बढ़ने लगता है. तलवारों से गैर नृत्य खेलकर समां बांधते हैं.

इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि उदयपुर के मेनार गांव में जमराबीज पर अनूठी होली खेली जाती है. ऐसे में यहां खेली जाने वाली होली की अपनी एक परंपरा और इतिहास है. जब महाराणा प्रताप ने मुगलों से संघर्ष के लिए हल्दीघाटी युद्ध की शुरुआत की थी. ऐसे में प्रताप ने मेवाड़ के हर व्यक्ति को उस चेतना से जोड़ते हुए स्वाभिमान का जो पाठ पढ़ाया था. इसी के बाद में अमर सिंह के नेतृत्व में मुगल थानों पर विभिन्न हमले किए जा रहे थे.

मेनार की होली

उन्होंने बताया कि इसी प्रसंग के अंदर मेनार के पास एक मुगलों की छावनी हुआ करती थी. ऐसे में मुगलों की छावनी का जो अत्याचार था. इससे मुक्ति पाने के लिए मेनार के ही ग्राम वासियों ने मुगलों के अत्याचार का मुंहतोड़ जवाब देने की योजना बनाई. मेनार के लोगों ने एकजुट होकर मुगलों का मुंहतोड़ जवाब दिया. लोगों ने मुगलों की छावनी पर भीषण आक्रमण करते हुए वहां की सेना को शिकस्त दी. इसके बाद में जो जीत हासिल हुई थी. उसी की याद यहां हर साल मेनार की अनूठी होली खेली जाती है.

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