कश्मीर में नवरोज के अवसर पर हर साल सैकड़ों मरीज लंबे समय से परेशान कर रही बीमारियों से मुक्ति पाने की उम्मीद में जोंक थेरेपी सेंटर के बाहर लंबी कतारें लगाते हैं.
यहां लोग जोंक थेरेपी से गुजरते हैं, जिसके तहत व्यक्ति के शरीर पर जोंक छोड़ी जाती है, जो उनका खून चूसते समय अपनी लार में मौजूद एंटीकॉग्युलेंट गिराते हैं. एंटीकॉग्युलेंट व्यक्ति के खून को पतला करता है.
जोंक थेरेपी देने वाले कर्मी आमतौर पर यूनानी डॉक्टर होते हैं. वे दावा करते हैं कि यह थेरेपी कई बीमारियों के इलाज में कारगर है, जिनमें फैटी लिवर (लिवर पर वसा जमना) से लेकर हाइपरटेंशन (उच्च रक्तचाप) और खून के थक्के जमने की समस्या तक शामिल है.
यूनानी डॉक्टर डॉ. हकीम नसीर अहमद ने बताया कि जोंक थेरेपी का इस्तेमाल रोधगलन (प्रभावित हिस्से में खून का प्रवाह न होने से ऊतकों का दम तोड़ना) के मामलों में या फिर उन मरीजों में किया जाता है, जिनमें रक्त संचार सही तरीके से नहीं होता है.
डॉ. अहमद के मुताबिक जोंक एक जादुई दवा के तौर पर काम करता है. उन्होंने कहा कि हमारा मकसद खून चूसवाना नहीं, बल्कि जोंक की लार में मौजूद एनजाइम को मरीज के रक्त में पहुंचाना है. ये एनजाइम रक्त संचार को सुचारू बनाते हैं, जिससे हमारे डॉक्टरीय लक्ष्य की पूर्ति हो जाती है.
डॉ. अहमद कश्मीर घाटी में पिछले 24 वर्षों से जोंक थेरेपी शिविर लगा रहे हैं. उन्होंने दावा किया कि यह थेरेपी न सिर्फ हाइपरटेंशन, बल्कि हाइपोटेंशन (निम्न रक्तचाप) के इलाज में भी कारगर है. वह कहते हैं कि हाइपरटेंशन के मामलों में हमने देखा कि लीच थेरेपी देने के 15 मिनट के भीतर रक्तचाप सामान्य हो जाता है. हाइपोटेंशन के मामलों में भी हमने देखा कि रक्तचाप कुछ ही मिनटों में काबू में आने लगता है.
डॉक्टर ने बताए ये फायदे
डॉ. अहमद के अनुसार, जोंक की लार में मौजूद एनजाइम खून में बने थक्कों को पिघलाने का काम करते हैं, जिससे रक्त प्रवाह सुचारु हो जाता है. उन्होंने कहा कि यह पाया गया कि धमनियों में खून के छोटे थक्के हो सकते हैं, जिनकी जांच में पहचान नहीं हो पाती है.
शरीर में इन थक्कों की मौजूदगी के कारण रक्त प्रवाह में आने वाली बाधा की प्रतिक्रिया में रक्तचाप बढ़ने लगता है. जोंक की लार में मौजूद एनजाइम थक्कों को पिघलाते हैं, जिससे रक्तचाप सामान्य होने लगता है. डॉ. अहमद ने दावा किया कि जोंक थेरेपी ग्लूकोमा (काला मोतिया, जो दृष्टिहीनता का कारण बन सकता है) के उपचार में भी प्रभावी साबित हो सकती है.
हर साल 21 मार्च को शिविर आयोजित करने के महत्व के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि शरीर को साल में दो बार डिटॉक्सिफाई (विष हरण) करने की जरूरत होती है. डॉ. अहमद के मुताबिक यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार, दो मौसम वसंत और शरद ऋतु में जब शरीर को विषहरण के लिए केवल एक उत्तेजक की आवश्यकता होती है. इन दोनों में भी वसंत ऋतु को सर्वश्रेष्ठ माना गया है. यह परंपरा सैकड़ों साल से चली आ रही है.
एक लोकप्रिय धारणा यह भी है कि जोंक थेरेपी 21 मार्च को मनाए जाने वाले नवरोज पर अधिक प्रभावी होती है. श्रीनगर निवासी अब्दुल सलाम बाबा ने बताया कि वह कई वर्षों से फैटी लिवर और उच्च रक्तचाप की समस्या से जूझ रहे थे. वह कहते हैं कि मैं इलाज के लिए कई अस्पतालों में गया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. इस बीच, मैं पिछले साल जोंक थेरेपी के लिए यहां आया और मेरी स्थिति में अब काफी सुधार हुआ है.