संवाद
आज वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि है। इस दिन गंगा सप्तमी मनाई जाती है। इसी तिथि पर चित्रगुप्त का प्राकट्योत्सव भी मनाया जाता है। आज नीम सप्तमी भी मनाई जाती है। ज्योतिष अनुसार इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। लेकिन इस बार लॉकडाउन के चलते हुए तीर्थस्थल जाकर स्नान कर पाना संभव नहीं होगा। तो ऐसे में आप घर पर ही नहाने के पानी में थोड़ा गंगाजल मिलाकर स्नान कर लें।
◆बिना घाट जाए मां गंगा को ऐसे करें प्रसन्न :
गंगा सप्तमी के दिन गंगा में स्नान, तप ध्यान और दान पुण्य करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन गंगा स्नान करते समय कई लोग बिना जाने कुछ गलतियां कर देते हैं। जानते हैं कि कैसे इस बार आप बिना गंगा घाट जाए घर पर ही मां गंगा को प्रसन्न कर सकते हैं।
– घर पर भी गंगाजल से स्नान करते समय इस बात का ध्यान रखें कि आपके मन में कोई छल या कपट न हो।
- नदी स्नान समझकर ही पूरी श्रद्धा से मां गंगा को प्रणाम करते हुए स्नान करें।
– गंगा स्नान के बाद गंगा लहरी और गंगा स्त्रोत का पाठ करना न भूलें।
शिव की जटाओं से धरती पर उतरीं थीं मां गंगा :
स्कंदपुराण के अनुसार वैशाख शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को ही गंगा स्वर्ग लोक से भगवान शिव शंकर की जटाओं में पहुंची थी इसलिए इस दिन को गंगा जयंती और गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुई वह दिन ‘गंगा दशहरा’ के नाम से जाना जाता है। गंगा जयंती के दिन गंगा पूजन एवं स्नान से रिद्धि-सिद्धि, यश-सम्मान की प्राप्ति होती है तथा समस्त पापों का नाश हो जाता है।
गंगा सप्तमी कथा और महत्व :
मोक्षदायिनी मां गंगा के बारे में मान्यता है कि सूर्यवंशी राजा सगर के 60 हजार पुत्रों को कपिल मुनि ने शाप से भस्म कर दिया था। तब अपने पितृगणों को मोक्ष प्रदान करने के लिए राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर माता गंगा को प्रसन्न किया और धरती पर लेकर आए। पुराणों के अनुसार भगीरथी के अथक प्रयास से ही गंगा भगवान शिव की जटाओं से होती हुई पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं। एक बार गंगा जी तीव्र गति से बह रही थी, उस समय ऋषि जह्नु भगवान के ध्यान में लीन थे एवं उनका कमंडल और अन्य सामान भी वहीं पर रखा था। जिस समय गंगा जी जह्नु ऋषि के पास से गुजरी तो वह उनका कमंडल और अन्य सामान भी अपने साथ बहा कर ले गई जब जह्नु ऋृषि की आंख खुली तो अपना सामान न देख वह क्रोधित हो गए। उनका क्रोध इतना ज्यादा था कि अपने गुस्से में वे पूरी गंगा को पी गए। जिसके बाद भागीरथ ऋृषि ने जह्नु ऋृषि से आग्रह किया कि वह गंगा को मुक्त कर दें। जह्नु ऋृषि ने भागीरथ ऋृषि का आग्रह स्वीकार किया और गंगा को अपने कान से बाहर निकाला। जिस समय घटना घटी थी, उस समय वैशाख पक्ष की सप्तमी थी इसलिए इस दिन से गंगा सप्तमी मनाई जाती है। इसे गंगा का दूसरा जन्म भी कहा जाता है। अत: जह्नु ऋषि की कन्या होने की कारण ही गंगाजी ‘जाह्नवी’ कहलायीं।