पंजाब प्रांत के मूल निवासी देश के जिस भी हिस्से में रहते हैं, वहां इस त्यौहार को पूरी विधि से बनाते हैं। लोक परंपरा, धर्म और प्रकृति के परिवर्तन से जुड़ा यह समय बैसाखी पर्व की महत्ता को दर्शता है। इस पर्व पर पंजाब के लोग अपने रीति रिवाज के अनुसार भांगड़ा और गिद्दा करते हैं। इस दिन मुख्य समारोह आनंदपुर साहिब में होता है, जहां खालसा पंथ की नींव रखी गई थी। लेकिन इस वर्ष लोग अपने घरों में।रहकर ही वैसाखी मनाएंगे। पारंपरिक नृत्य के बाद के बाद शाम को आग्नि प्रज्जवलित करके नई फसलों की खुशी मनाई जाती है। श्रद्धालु इस दिन कारसेवा भी करते है। इसके साथ गुरु गोबिंद सिंह और पंज प्यारों के सम्मान में कीर्तन किए जाते हैं।
धार्मिक महत्व के अनुसार, वैसे तो सूर्य की संक्रांति हर महीने होती है लेकिन हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख महीने की संक्रांति महत्वपूर्ण बताई गई है। इस माह में दो मौसमों का मेल होता है। शरद ऋतु की विदाई और गर्मी के आगमन का समय होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, गुरु गोबिंद सिंह ने वैशाख माह की षष्ठी तिथि को खालसा पंथ की स्थापना की थी। इस पंथ की स्थापना का उद्देश्य सामाजिक भेदभाव को खत्म करना था। इसके लिए गुरुदेव ने पंज प्यारों को अमृत चखाया और स्वयं भी उनके हाथों अमृतपान किया। इसके बाद ही सिखों के लिए केश, कंघा, कड़ा, कच्छा और कृपाण धारण करना जरूरी किया था। सिख इस त्योहार को सामूहिक जन्मदिवस के रूप में भी मनाते हैं।
बैसाखी का यह खूबसूरत पर्व अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। केरल में यह त्योहार 'विशु' कहलाता है। बंगाल में इसे नब बर्षा, असम में इसे रोंगाली बीहू, तमिलनाडु में पुथंडू और बिहार में इसे वैशाख के नाम से जाना जाता है। बैसाखी का संबंध फसल के पकने की खुशी का प्रतीक भी है। कहा जाता है कि किसान इस त्योहार के बाद ही गेहूं की फसल की कटाई शुरू करते हैं। किसान इसलिए खुश हैं कि अब फसल की रखवाली करने की चिंता समाप्त हो गई है और नई पैदावार की तैयारी करनी है। इस दिन गंगा स्नान का अत्यंत महत्व होता है। इस दिन पाप नाशिनी गंगा में स्नान करने से पुण्य लाभ होता है।