भले ही दहेज कुप्रथा कहा जाता हो. लेकिन अब भी इसका खात्मा नहीं हुआ है. यूपी बिहार जैसे प्रदेशों में दहेज का चलन अब भी चरम पर है. दहेज का निर्धारण लड़के की प्रोफाइल के हिसाब से होता है. यानी लड़का जितना क्वालिफाइड और जितनी अच्छी नौकरी, उसे उतना ही ऊंचा दाम देकर लड़की के घरवाले अपना दामाद बनाते हैं. अपनी बोली लगने जैसी इस रस्म में लड़के या उसके घरवालों को शर्म नहीं आती. क्योंकि ऊंचे दाम में बेटे की शादी तय होना उनके लिए गुरूर की बात होती है. लेकिन दशकों पहले शुरु हुई एक परंपरा इससे अलग थी.जी हां, हम बात कर रहे हैं मधुबनी जिला अंतर्गत लगने वाले दूल्हे की मंडी के बारे में। यहां सौराठ सभा यानी दूल्हों का मेला 22 बीघा जमीन पर 9 दिनों तक चलता है। लोग इसे सभागाछी के रूप में भी जानते हैं। मैथिल ब्राह्मण के इस मेले में देश-विदेश से कन्याओं के पिता योग्य वर का चयन कर अपने साथ ले जाते हैं और चट मंगनी पट विवाह कर देते हैं। इतना ही नहीं, योग्यतानुसार दूल्हों की सौदेबाजी भी की जाती है। आज पढि़ए दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की स्पेशल रिपोर्ट में इस रोचक दूल्हे की मंडी की कहानी।
700 साल पहले यह मेला आरंभ हुआ था। साल 1971 में यहां लगभग 1.5 लाख लोग आए थे। वर्तमान में आने वालों की संख्या कम हो गई है। पंजिकार झा वैज्ञानिक तर्क देते हुए बताते हैं कि डिफरेंट ब्लड गु्रप में विवाह करने से जन्म लेने वाला संतान सुंदर और स्वस्थ्य होता है।विवाह को लेकर विभिन्न समुदाय और धर्मों में अलग-अलग रिवाजों के बारे में आपने सुना होगा। मगर कभी दूल्हों को बिकते हुए देखा है? लोकल पब्लिक की मानें तो अधिकतर पुरानी परंपराएं खत्म हो गई है। दहेज प्रथा को रोकने के लिए राजा हरि सिंह देव ने इस मेले की शुरुआत की थी।
लेकिन इससे उलट अब आलम यह है कि इस मेले में लड़की पक्ष वाले वर के योग्यतानुसार मूल्य निर्धारित करते हैं। इस वजह से इसका महत्व कम होने लगा है। ज्ञात हो कि बिहार सरकार 2 अक्टूबर से दहेज प्रथा को लेकर अभियान चलाने की तैयारी में है। अगर सौराठ सभा अपने उद्देश्य में सफल होता तो सरकार को आज यह अभियान नहीं चलाना पड़ता।