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UN में भारत का बड़ा बयान, या तो सभी देशों के साथ समान बर्ताव करें या नए स्थायी सदस्यों को भी दें वीटो का अधिकार

संवाद 

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की स्थायी सदस्यता एवं उसके वीटो पावर को लेकर भारत ने बड़ा बयान दिया है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन के काउंसलर प्रतीक माथुर ने दो टूक शब्दों में कहा है कि जहां तक वोटिंग के अधिकार की बात है तो या तो सभी देशों के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाए अथवा नए सदस्यों को भी वीटो का अधिकार मिलना चाहिए।

वीटो का अधिकार नए सदस्यों को भी मिले-भारत

माथुर ने कहा कि हमारा मानना है कि नए सदस्यों को जोड़े जाने से विस्तारित परिषद की कार्यकुशलता में कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। भारतीय मिशन के अधिकारी ने आगे कहा कि वोटो का इस्तेमाल करने का विशेष अधिकार केवल पांच देशों के पास है। यह देशों के संप्रभु समानता के अवधारणा के खिलाफ है। यह द्वितीय विश्व युद्ध की मानसिकता (विजेता को ही सब कुछ मिलता) को ही आगे बढ़ाता है।

पाकिस्तान को दिया करारा जवाब

माथुर ने जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता को लेकर सवाल उठाने वाले को भी करारा जवाब दिया। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख हमेशा से भारत के आंतरिक एवं अभिन्न हिस्से थे, हैं और आगे भी रहेंगे। इस तथ्य को किसी भी देश का प्रोपगैंडा झुठला नहीं सकता।

UNSC के 5 स्थायी, 10 अस्थायी सदस्य

बता दें कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी और 10 अस्थायी सदस्य हैं। पांच स्थायी सदस्य देश-अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन हैं। भारत अभी अस्थायी सदस्यों में है। वैश्विक चुनौतियों एवं जिम्मेदारियों को देखते हुए भारत लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र एवं यूएनएससी में सुधार की मांग उठाता रहा है। भारत खुद को स्थायी सदस्यता देने की मांग मजबूती से उठाता रहा है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई बार यह कह चुके हैं कि अंतरराष्ट्रीय जरूरतों एवं स्थितियों को देखते हुए यूएनएससी में सुधार करने की जरूरत है।

चार देश करते हैं भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन

दरअसल, पांच स्थायी सदस्यों के पास वीटो का अधिकार होता है। यूएनएससी में लाए गए किसी प्रस्ताव पर यदि कोई स्थायी सदस्य देश वीटो कर देता है तो यह प्रस्ताव खारिज हो जाता है। वीटो किसी प्रस्ताव को अस्वीकार करने का अधिकार देता है। किसी प्रस्ताव को पारित करने के लिए पांचों सदस्यों की सहमति जरूरी होती है। 

भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस कर चुके हैं। केवल चीन ही है जो भारत की स्थायी सदस्यता का विरोध करता आया है। चीन नहीं चाहता कि भारत को वीटो पावर का अधिकार मिले।

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