1) राजनीति विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार पांडेय का बोलना है कि अभी लोकसभा चुनाव में एक वर्ष बचे हुए हैं और यह पहली बैठक है, इसलिए उस बैठक से कोई निष्कर्ष निकलने की अनुमान नहीं बन सकती है. यह बैठक एक औपचारिक मात्र है. इस बैठक से यह दिखाना है कि बीजेपी के विरुद्ध देश के सारे विपक्ष एकत्व हो चुके हैं.
उसके बाद अभी कई बैठकें होंगी
2) बीजेपी के विरुद्ध सारे को एकत्व होने के लिए तीन स्टेज हैं. अभी बैठक की प्रारंभ होने जा रही है. उसके बाद सीटों के बंटवारा पर बात होगी. कॉमन मिनिमम कार्यक्रम और प्रधानमंत्री का मुखौटा तय होना है. इन तीनों मुख्य बातों पर अगर सबकी अनुमति एक तरह बनी तो मुमकिन हो सकता है, परंतु ऐसा होना नामुमकिन दिख रहा है.
3) सबसे बड़ी मुसीबत सीटों के बंटवारे पर हो सकती है. लोकसभा की कुल 543 सीटों में तकरीबन ढाई सौ से ज्यादा सीटों पर क्षेत्रीय दलों का कब्जा है. बात बिहार की करें तो जेडीयू-आरजेडी का कब्जा है. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ऐसे कई राज्य हैं. कांग्रेस चाहेगी कि 300 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़े, लेकिन कांग्रेस जहां चाहेगी वहां मुमकिन भी नहीं होगा कि इसे वह सीट मिल सकती है.
4) कई राज्य ऐसे भी हैं जहां क्षेत्रीय दलों का सीधे कांग्रेस से मुठभेड़ है. आम आदमी पार्टी का दिल्ली और पंजाब में कब्जा है और कांग्रेस से रण होती है. ममता बनर्जी की सीपीआई और कांग्रेस से रण होती है, समाजवादी पार्टी कांग्रेस के लिए सीट छोड़ने को तैयार नहीं है. तो सीट बंटवारे के समय ही सबसे बड़ी मुसीबत पैदा हो सकती है.
5) दूसरी मुसीबत प्रधानमंत्री के मुखौटे की है. बिहार के अलावा देश के कई ऐसे राज्य हैं जहां क्षेत्रीय दल मजबूत है और बड़े नेता भी हैं. ऐसे में कई दल नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री का मुखौटा स्वीकार नहीं कर सकते हैं. खुद कांग्रेसी भी नीतीश कुमार को या किसी को भी प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में स्वीकार नहीं कर सकती है.
6) बीजेपी को हराने के लिए सभी भाजपा शत्रु पार्टियों को एकत्व होकर वन टू वन फाइट करना होगा जो इतना आसान नहीं है. हालांकि किसी भी सूरत में यूपीए चुनाव के पहले प्रधानमंत्री का मुखड़ा नहीं घोषित कर सकती है क्योंकि इससे मुश्किलेऔर बढ़ेगी और यह बीजेपी के लिए फायदेमंद भी होगा.
7) नीतीश कुमार ने सभी को एकत्व करने के लिए अगुवाई की है, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि यह कांग्रेस के कन्वेनर के रूप में कार्य कर रहे हैं क्योंकि अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी और अखिलेश यादव कांग्रेस से सीधे बात नहीं कर सकते थे. इसलिए नीतीश कुमार को आगे किया गया है, लेकिन यह कितना सफल होगा वह सफल बताएगा.
8) 12 जून को पटना में होने वाली बैठक में प्रधानमंत्री के मुखड़े के रूप में नीतीश कुमार के नाम पर छाप लगेगी? तेजस्वी बिहार की कमान संभालेंगे? इसका सीधा जवाब है नहीं. राजनीतिक जानकार अरुण पांडेय ने बोला कि प्रधानमंत्री का मुखड़ा नीतीश कुमार को बनाया भी जाता है तो मुख्यमंत्री के पद को छोड़ना कोई आवश्यकता नहीं है.
9) बीजेपी से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री का मुखड़ा बनाया गया था उस वक्त वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे. प्रधानमंत्री बनने के बाद मुख्यमंत्री के पद से इन्होंने त्यागपत्र दिया था. यह कहीं से कानून नहीं है कि मुखड़ा बनने पर पद छोड़ना पड़ सकता है. नीतीश कुमार ने यह बोला है कि 2025 में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा लेकिन उससे पहले तेजस्वी का मुख्यमंत्री बनने का कोई दूर-दूर तक रास्ता नहीं दिख रहा है.
10) हालांकि तेजस्वी यादव या लालू प्रसाद यादव इस पर ज्यादा उतावले नहीं हैं. जेडीयू-आरजेडी दोनों पार्टी के कुछ नेता कभी-कभी ऐसा बोल देते हैं लेकिन लालू परिवार किसी भी सूरत में नीतीश को खफा करके कोई काम नहीं कर सकता है क्योंकि वे सत्ता में बने हुए हैं यह उनके लिए सबसे बड़ी बात है. क्योंकि नीतीश कुमार अगर बीजेपी का साथ नहीं छोड़ते तो वह विपक्ष में ही अब तक रहते इसलिए 2025 के पहले तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलना अभी नामुमकिन दिख रहा है.