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वट सावित्री (बड़ मावस) पूजा क्यों की जाती है..?

संवाद 

वट सावित्री व्रत सौभाग्य को देने वाला और संतान की प्राप्ति में सहायता देने वाला व्रत माना गया है । भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श #नारीत्व का प्रतीक बन चुका है । इस व्रत की तिथि को लेकर भिन्न मत हैं । स्कंद पुराण तथा भविष्योत्तर पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यह व्रत करने का विधान है, वहीं निर्णयामृत आदि के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को व्रत करने की बात कही गई है ।

इस पूजा का उद्देश्य है सौभाग्य की वृद्धि और पतिव्रत के संस्कारों को आत्मसात करना । कई व्रत विशेषज्ञ यह व्रत ज्येष्ठ मास की त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिनों तक करने में भरोसा रखते हैं। इसी तरह शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से पूर्णिमा तक भी यह व्रत किया जाता है । विष्णु उपासक इस व्रत को पूर्णिमा को करना ज्यादा हितकर मानते हैं।

वट सावित्री व्रत में 'वट' और 'सावित्री' दोनों का विशिष्ट महत्व माना गया है । पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी विशेष महत्व है । पाराशर मुनि के अनुसार- 'वट मूले तोपवासा' ऐसा कहा गया है । पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है । इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है । 
वट वृक्ष अपनी विशालता के लिए भी प्रसिद्ध है संभव है वनगमन में ज्येष्ठ मास की तपती धूप से रक्षा के लिए भी वट के नीचे पूजा की जाती रही हो और बाद में यह धार्मिक परंपरा के रूप में विकसित हो गई हो ।

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