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जीतन राम मांझी के लिए पेंच फंसा रहे BJP के मददगार? जानिए क्यों

संवाद 


बिहार में अनुसूचित जाति और जनजाति कल्याण मंत्री संतोष सुमन (Santosh Suman) ने मंगलवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के  मंत्रिमंडल से एकाएक त्यागपत्र दे दिया. उनके त्यागपत्र से राज्य में एक बार फिर से नए सियासी समीकरण बनने का अनुमान जताया जा रहा है. अब लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में बीजेपी (BJP) गठबंधन का कुनबा और बड़ा होने की अनुमान है. हालांकि ये अभी बोलना जल्दबाजी है, इसके पीछे कई कारण है. दरअसल, संतोष सुमन का त्यागपत्र ऐसे समय में आया है जब लोकसभा चुनाव में अब एक वर्ष से भी कम का समय बचा हुआ है. इतना ही नहीं अब हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा ने महागठबंधन से अलग होने का एलान भी कर दिया. 


ऐसे में अब अनुमान जताई जा रही है कि पार्टी बीजेपी के साथ गठबंधन करेगी.

 लेकिन सियासत के जानकारों की मानें तो बीजेपी के लिए जीतन राम मांझी को आगामी लोकसभा चुनाव में दो सीटों की मांग जरूर रखेंगे. हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा अगर बीजेपी के साथ जाती है तो पार्टी अपने लिए गया और जहानाबाद लोकसभा सीट की मांग रख सकती है. इसके पीछे एक कारण ये बताई जा रही है कि यही जीतन राम मांझी का इलाका रहा है. गठबंधन के लिए पार्टी इन दोनों ही सीटों पर अपना दावा सकती है. लेकिन दूसरी तरफ देखें तो बिहार में बीजेपी के साथ उपेंद्र कुशवाहा और चिराग पासवान की पार्टी का गठबंधन भी तय माना जा रहा है. 
अगर जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और चिराग पासवान भी बीजेपी के साथ जाते हैं तो इस गठबंधन में भी सीटों का पेंच फंसने की पूरी अनुमान है. इसके पीछे की कारण ये है कि उपेंद्र कुशवाहा जब बीजेपी के साथ थे तो उनकी पार्टी के तीन सांसद थे, यानी फिर से वो गठबंधन में तीन सीटों का दावा कर सकते हैं. जबकि चिराग पासवान जमुई से सांसद हैं और उनके पिता रामविलास पासवान हाजीपुर से सांसद रहे हैं. इस कारण से चिराग पासवान उस सीट पर अपना दावा कर रहे हैं. यानी पार्टी गठबंधन के लिए दो सीटों पर दावा करेगी. अब बात लोक जनशक्ति पार्टी यानी पशुपति नाथ पारस के दल की कर लें, अभी पार्टी के छह सांसद हैं. यानी पार्टी अपनी जीती हुई सभी सीटें गठबंधन में मांग सकती है. अब इस स्थिति में बीजेपी को अपने गठबंधन दलों को 40 में से 12 से 13 सीट देनी पड़ सकती है. जबकि पार्टी राज्य में ज्यादा से ज्यादा सीटों पर खुद चुनाव लड़ना चाहेगी. इसके पीछे भी सियासत विशेषज्ञ एक खास वजह मान रहे हैं. उनका बोलना है कि 2015 के विधानसभा चुनाव से बीजेपी ने बड़ी सीख ली है. तब बीजेपी ने अपने गठबंधन के मददगार को करीब आधी सीटें देनी पड़ी थी.इससे पूर्व भी 2010 के विधानसभा चुनाव में ऐसा ही कुछ हुआ था. तब बीजेपी ने 102 सीटों पर चुनाव लड़ा और बाकी सीट अपने मददगार जेडीयू को दे दी. बीजेपी ने 102 में से 93 सीटों पर जीत दर्ज की थी. और बता दें कि  2013 में गठबंधन टूटा और नीतीश कुमार ने बीजेपी से अलग होकर सरकार बना ली थी. 

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