मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की अगुवाई में पूरे देश की विपक्षी पार्टियों को इकट्ठा करने की कोशिश की जा रही है तो वहीं मायावती (Mayawati) की बहुजन समाज पार्टी एकला चलो की राह पर है. बहुजन समाज पार्टी पहले ही एलान कर चुकी है कि वह अकेले 2024 के लोकसभा का चुनाव लड़ेगी. बिहार में सभी 40 सीटों पर अपने उम्मीदवार को उतारेगी. बिहार में मायावती की पार्टी अब अपने प्लान की व्यवस्था करने में जुट गई है.बिहार में बहुजन समाज पार्टी को ठोस करने के लिए प्रशिक्षण शिविर होने जा रहा है. बीएसपी के बिहार प्रदेश प्रभारी अनिल कुमार ने बोला है कि चार से छह जुलाई तक नालंदा के अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर में प्रशिक्षण होने जा रहा है. इस प्रशिक्षण शिविर में पूरे प्रदेश से पार्टी के पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता सम्मिलित होंगे. प्रशिक्षण देने के लिए बहुजन समाज पार्टी के कई एक्सपर्ट प्रशिक्षक आ रहे हैं.अनिल कुमार ने बोला कि इस प्रशिक्षण शिविर में बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर के सपनों का भारत, मान्यवर कांशीराम की विचारधारा, बहुजन समाज पार्टी की विचारधारा, बूथ लेवल मैनेजमेंट के बारे में बताया जाएगा. लोकसभा चुनाव में बिहार की हर सीट पर मजबूती से लड़कर जीत प्राप्त करने और बहन मायावती को प्रधानमंत्री बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा.
अनिल कुमार ने बोला कि बसपा के पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता इस प्रशिक्षण शिविर को लेकर काफी ज्यादा उत्साहित हैं.
बहुजन समाज पार्टी बिहार में मजबूत होती है तो क्या होगा? इस पर सियासत विशेषज्ञ अरुण कुमार पांडेय का बोलना है मायावती की पार्टी बहुत पहले से बिहार में पांव पसार चुकी है. बिहार में अभी भी उनके साइलेंट वोटर हैं. किसी भी विधानसभा में कुछ न कुछ मतदान बीएसपी को मिलते हैं. बीएसपी पहले भी बिहार में चार सीटें जीत चुकी है. वर्ष 2020 में भी एक विधानसभा सीट पर जीत दर्ज हुई थी तो कई स्थानों पर अच्छे मतदान मिले थे. बीएसपी का बिहार में बहुत बड़ा जनाधार नहीं है लेकिन उनके कैडर वोटर हैं जो किसी पार्टी का खेल बना सकते हैं और बिगाड़ सकते हैं.अरुण पांडेय ने बोला कि अभी लोकसभा चुनाव में करीब 1 वर्ष है और बीएसपी अगर बिहार में ताबड़तोड़ तैयारी करती है तो वोट बैंक में इजाफा हो सकता है. ऐसे में इसका सीधा घाटा महागठबंधन को होगा. जो दलित वोट बीएसपी का है वह पहले महागठबंधन का ही था क्योंकि उन वोटों पर पहले कभी वामदल तो उसके बाद जेडीयू का कब्जा रहा है. कुछ वर्षों तक आरजेडी का भी उन वोटों पर कब्जा रहा है. बीजेपी को इसका मुनाफा मिलेगा क्योंकि महागठबंधन के मतदान में बिखराव होने से भारतीय जनता पार्टी को कई जगह जीत प्राप्त हो सकती है.