आरक्षण को धीरे-धीरे खत्म करने की मांग को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. इसी के साथ इस याचिका को दायर करने वाले पर चीफ जस्टिस की बेंच ने जुर्माना भी लगाया.
सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करके आरक्षण को धीरे-धीरे खत्म करने और वैकल्पिक आरक्षण नीति बनाने की मांग की गई थी.
इसको चीफ जस्टिस वाली बेंच ने खारिज कर दिया. कोर्ट ने याचिका कर्ता पर 25 हजार का जुर्माना लगाते हुए कहा कि ये प्रक्रिया का दुरुपयोग है.
इसी याचिकाकर्ता ने जाति व्यवस्था के वर्गीकरण के लिए नई नीति बनाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दाखिल की थी. इस मामले पर भी चीफ जस्टिस ने कड़ी नाराजगी जताते हुए याचिकाकर्ता पर 35 हजार का जुर्माना भी लगाया.
साथ ही इस जुर्माने को SCBA में जमा कर रसीद कोर्ट में पेश करने का आदेश देते हुए याचिका को खारिज कर दिया.
बता दें कि भारत में आरक्षण की शुरुआत सामाजिक और आर्थिक असमानताएं दूर करने के लिए हुई थी. अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को शैक्षणिक संस्थान, सरकारी नौकरियों और चुनावों में इसका लाभ मिलता है. हर राज्य में इसका प्रतिशत 15 (SC), 7.5 (ST) और 27 फीसदी (OBC) रहता है.
सामान्य कैटेगिरी वाले लोगों की तरफ से आरक्षण के खिलाफ कई बार आवाज उठाई गई है. इसके बाद मोदी सरकार ने साल 2019 में सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया था. इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी मिली थी, लेकिन 5 जजों की बेंच में से 3 जजों ने संविधान के 103 वें संशोधन अधिनियम 2019 को सही माना था. इसके बाद 10 फीसदी आरक्षण के प्रावधान को बरकरार रखा गया.