बात तो ये भी तय है कि चिराग महागठबंधन में नहीं जाने वाले हैं.
राजनीतिक जानकार और वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार पांडेय बोलते हैं कि चिराग पासवान एक युवा और पढ़े-लिखे नेता हैं. चिराग पासवान अपने आप को बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में देख रहे हैं और यही वजह है कि 2020 में हुए चुनाव में इन्होंने अपनी ताकत को दिखाया. अकेले चुनाव मैदान में आए. भले ही एक सीट मिली, लेकिन अपनी ताकत का एहसास कराया. अपने वोट बैंक को भी लोगों को दिखा दिया और इसका खामियाजा नीतीश कुमार को उठाना पड़ा था. यह भी सही है कि 2020 के बाद चिराग पासवान के वोट बैंक में वृद्धि हुई है.अरुण कुमार पांडेय बोलते हैं कि एनडीए के साथ रहना चिराग पासवान की मजबूरी है. महागठबंधन के साथ इसलिए नहीं जा सकते हैं कि वहां पहले से ही तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में हैं. ऐसे में चिराग पासवान की दाल नहीं गलने वाली है. बीजेपी में युवा चेहरा अभी तक नहीं है. बीजेपी तेजस्वी के विकल्प के रूप में और पढ़े-लिखे दलित चेहरा को देखते हुए चिराग पासवान के चेहरे पर विधानसभा का चुनाव लड़ सकती है.हालांकि यह आवश्यक भी नहीं है क्योंकि बीजेपी सम्राट चौधरी को आगे कर चुकी है और बिहार में पिछड़ा बनाम पिछड़ा की लड़ाई 2025 में हुई तो सम्राट चौधरी परफेक्ट उम्मीदवार बीजेपी की तरफ से होंगे. 2024 के लोकसभा चुनाव में चिराग पासवान की मजबूरी है. इन्होंने बोला कि बिहार में पासवान जाति लगभग 7% है. उसके अलावा दलित वर्ग के कई लोग रामविलास पासवान के वोटर रहे हैं और वह वोट चिराग पासवान की तरफ झुक चुका है.अरुण पांडेय ने बोला कि अभी के वक्त में चिराग पासवान दही के जोरन के समान हैं. जिस प्रकार बिना जोरन के दही नहीं जम सकता है उसी प्रकार चिराग पासवान के बगैर महागठबंधन या बीजेपी मजबूत नहीं बन सकती है. उन्होंने बताया कि लोक जनशक्ति पार्टी में भी दो टुकड़े हो गए हैं, लेकिन बिहार में पासवान जाति के लोग रामविलास पासवान के मुखौटे के रूप में चिराग पासवान को देखते हैं.