बाबा बागेश्वर ने अंग्रेजों की धरती इंग्लैंड में कोहिनूर हीरे का जिक्र कर दिया, जिसकी चर्चा हमेशा होती रहती है और भारत वापसी की बातें भी की जाती रही हैं.
मगर भक्तों के बीच बैठे अंग्रेजों के सामने बाबा ने कुछ ऐसा कहा जो अब सुर्खियां बटोर रहा है. बाबा बागेश्वर इन दिनों सात समंदर पार इंग्लैंड में हैं और वहीं से उन्होंने कोहिनूर की पर्ची निकाल दी है. रामकथा में बाबा ने जैसे ही कोहिनूर का जिक्र किया तो पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा. बाबा बागेश्वर ने अंग्रेजों की धरती पर अंग्रेजों के सामने कोहिनूर भारत ले जाने की बात कही तो वहां मौजूद हिंदुस्तानियों की सीना गर्व से चौड़ा हो गया.
'चिंता मत करो कोहिनूर लेकर आएंगे'
बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री ने कहा कि सामने हमारे जैसे बैठे हैं. बगल में अति VIP, इस तरफ और भी VIP और कुर्सियों पर बैठे हैं. कथा सुन रहे हैं टकटकी लगाकर. कुछ लोग तो कल कह रहे थे फोन लगाकर गुरु जी कब आओगे भारत? मैंने एक सज्जन से कह दिया हमको तो अब यहीं अच्छा लगने लगा. बोले कब आओगे? हमने कहा चिंता मत करो कोहिनूर लेकर आएंगे.
इंग्लैंड में दिखा बाबा का दिलचस्प अंदाज
जान लें कि इंग्लैंड के अलग-अलग शहरों में बागेश्वर धाम सरकार अपना दरबार लगा रहे हैं और उसी दरबार के जरिए वो दुनिया में सनातन का डंका बजाने की भी कवायद में हैं. बाबा बागेश्वर अपनी बात बेबाकी से कहते हैं. लोगों को उनका इतिहास, वर्तमान और भविष्य सब बता देते हैं. इंग्लैंड में भी बाबा का वही दिलचस्प अंदाज देखने को मिल रहा है.
बागेश्वर बाबा ने किया कोहिनूर का जिक्र
पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री देश के अलग-अलग राज्यों में दरबार लगाने के बाद अब विदेशी धरती पर पर्चियां निकाल रहे हैं. उनकी कोशिश भारत और भारतीय संस्कृति की पताका जगह-जगह फहराने की है. ये सब बातें अपनी जगह हैं लेकिन बाबा बागेश्वर ने जिस कोहिनूर का जिक्र किया उसका इतिहास बेहद पुराना है.
गौरतलब है कि कोहिनूर हीरा करीब 800 साल पहले आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में मौजूद गोलकुंडा की खदान से निकाला गया था जो आज भी दुनिया का सबसे बड़ा हीरा है. शुरुआत में इसका कुल वजन 793 कैरेट था. हालांकि, इसके बाद से इस हीरे को कई बार तराशा गया और इसका मूल रूप 105.6 कैरेट का है. कहा जाता है कि ये हीरा जमीन से सिर्फ 13 फीट की गहराई पर मिला था.
गोलकुंडा की खदान से निकलने के बाद इस हीरे के पहले मालिक काकतिय राजवंश थे. 1850 में अंग्रेज इसे अपने साथ इंग्लैंड लेकर गए तब से वहीं है. भारत इस पर अपना दावा करता रहा है और इसे वापस लाने की कोशिश भी लगातार हो रही है.