आँध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने अहमदिया मुसलमानों को काफिर कहते हुए उन्हें मुस्लिम मानने से इनकार कर दिया. इसपर केंद्र ने कड़ी आपत्ति जताते हुए राज्य सरकार से मामले में दखल देने को कहा है.
अब अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय इसे देखेगा. वैसे अहमदिया मुस्लिम भारत ही नहीं, पाकिस्तान में भी चरमपंथी सोच का शिकार होते रहे. समझिए, क्यों बाकी मुस्लिम समाज उन्हें अपनाने को तैयार नहीं. ऐसा क्या अलग है इस संप्रदाय में?
मोहम्मद साहब को आखिरी नबी नहीं मानते
ये सुन्नी मुस्लिमों की सब-कैटेगरी है, जो खुद को मुसलमान मानते हैं, लेकिन मोहम्मद साहब को आखिरी पैगंबर नहीं मानते. वे यकीन करते हैं कि उनके गुरु यानी मिर्जा गुलाम अहमद, मोहम्मद के बाद नबी (दूत या मैसेंजर) हुए थे. वहीं पूरी दुनिया में इस्लाम को मानने वाले मोहम्मद को ही आखिरी पैगंबर मानते रहे. यही बात अहमदिया मुस्लिमों को बाकियों से अलग बनाती है.
कैसे हुई शुरुआत?
अहमदिया समुदाय को बनाने वाले मिर्जा गुलाम अहमद थे, जिनका जन्म पंजाब के कादियान में हुआ था. यही वजह है कि कई बार इन्हें मानने वाले खुद को कादियानी भी कहते हैं. मार्च 1889 में गुलाम अहमद ने लुधियाना में एक बैठक रखी, जहां उन्होंने अपने खलीफा होने का एलान किया. उसी रोज वहां कई लोगों ने गुलाम अहमद की बात मानी, जिसके बाद से अहमदिया जमात बढ़ती चली गई.
किस देश में कितनी आबादी?
अलग-अलग आंकड़े मानते हैं कि फिलहाल दुनिया में 10 से 20 मिलियन अहमदिया होंगे, जो कि कुल मुस्लिम आबादी का 1 प्रतिशत है. पाकिस्तान में लगभग 40 से 60 लाख के साथ इनकी आबादी सबसे ज्यादा है. दूसरे नंबर पर नाइजीरिया है, और फिर तंजानिया है.
कई अफ्रीकी देशों में अहमदिया बसे हुए हैं क्योंकि भारत-पाकिस्तान में लगातार इनका विरोध होता रहा, जबकि अफ्रीका इनके लिए उदार रहा. वैसे पाकिस्तान में इस समुदाय की असल आबादी पर विवाद रहा. दरअसल यहां इनपर इतनी सख्ती है कि शायद बहुत से लोग अपनी पहचान छिपाकर रहते हों.
पाकिस्तान में इनकी हालत सबसे खराब रही
पाकिस्तान के लोग इन्हें मुस्लिम नहीं मानते. यहां तक कि पाकिस्तानी कानून के मुताबिक, खुद अहमदिया भी अपने-आप को इस्लाम से जुड़ा नहीं बता सकते और न ही अपने धर्म का प्रचार कर सकते हैं, वरना 3 साल तक की सजा हो सकती है.
सत्तर के दशक में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ये नियम लेकर आए थे. उनकी सरकार ने इन लोगों को माइनोरिटी, वो भी नॉन-मुस्लिम बता दिया. इसके बाद से वहां के मुस्लिम रह-रहकर अहमदिया समुदाय पर हमले करते रहे.
मस्जिदों से लेकर कब्रिस्तान का भी बंटवारा हो गया
उनके कब्रिस्तान आम मुसलमानों से अलग हो गए. उनकी मस्जिदें तोड़ी जाने लगीं. इसी साल की शुरुआत से दो बार ऐसे मामले आए, जब पाकिस्तान की मेजोरिटी ने अहमदियों की मस्जिदों पर हमले किए. उनपर अक्सर ही ईशनिंदा का केस हो जाता है.
हमारे नहीं अपनाया गया
भारत के मुसलमानों में अहमदिया समुदाय से नफरत उस दर्जे की तो नहीं, लेकिन है जरूर. नब्बे के दशक में देवबंद समेत कई जगहों पर इनसे दूरी बरतने की अपील हुई. यहां तक कि कई ऐसी किताबें-पर्चे बंटे, जिसमें कहा गया कि अहमदिया चूंकि पैगंबर को नहीं मानते हैं, इसलिए उनपर शारीरिक हिंसा भी जायज है. दिल्ली में जमाते अहमदिया के तत्कालीन अध्यक्ष अंसार अहमद ने भारत में इस नफरत के पीछे पाकिस्तान का हाथ बताया था.
हज पर भी पाबंदी
अहमदिया मुस्लिमों का यकीन बाकी मुसलमानों को इस कदर अखरता है कि उनका हज पर जाना भी आधिकारिक तौर पर बैन है. मान्यता है कि हर एडल्ट मुस्लिम को जीवन में एक बार मक्का जरूर जाना चाहिए, लेकिन अहमदियों के लिए सऊदी अरब ने दरवाजे बंद कर रखे हैं. सऊदी भी उन्हें मुसलमान नहीं मानता. ऐसे में अगर इस समुदाय का कोई शख्स हज की सोचकर वहां जाए तो उसे हिरासत में लेकर वापस भेजा जा सकता है.
एक और अहमदियों को बाकियों से बिल्कुल अलग बनाती है. ये समुदाय भगवान कृष्ण को भी ईश्वर का दूत मानता है.
अहमदिया मुस्लिम कम्युनिटी की आधिकारिक वेबसाइट अल इस्लाम में इस बात का जिक्र है. ये तबका दूसरे धर्मों की भी बात सुनता और कहीं न कहीं उसे स्वीकार करता है. जैसे वे बुद्ध और यीशु को भी नबी मानते हैं, जो ऊपरवाले की बात को लोगों तक पहुंचाने का जरिया बने.
कितने हिस्सों में बंटे हैं मुसलमान
क्रिश्चियनिटी के बाद इस्लाम को मानने वालों की आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा है. ये भी शिया और सुन्नी ही नहीं होते, बल्कि कई श्रेणियों में बंटे हुए हैं. सुन्नी शियाओं से कई गुना ज्यादा हैं. ये दोनों ही संप्रदाय अल्लाह, कुरान और पैगंबर को मानते हैं, लेकिन उनके वारिसों पर दोनों की सोच अलग हो जाती है. सुन्नी संप्रदाय भी देश और तौर-तरीकों के आधार पर 6 हिस्सों में बंटा है. इसी में से एक में देवबंदी आते हैं. वहीं शियाओं में 3 सब-डिवीजन हैं.