अब इसका रूप क्या होगा ये अक्टूबर के आसपास फैसला होने का अनुमान देखता हूं.
प्रशांत किशोर ने बोला कि जब मैंने पदयात्रा की शुरुआत की थी तब मैंने बताया था कि पदयात्रा के बाद सब लोग मिलकर दल बनाएंगे. पदयात्रा जब प्रारंभ की गई थी तो एक अनुमान था कि एक जिले में पदयात्रा को समाप्त होने में 10 से 15 दिन का वक्त लगेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ आज एक जिले में पदयात्रा समाप्त होने में 50 से 60 दिन लग रहा है. हम सबके बीच जिक्र हो रही है और यह संभव है कि अगले दो से तीन महीने में जिन जिले में पदयात्रा खत्म हो चुकी है और जहां संगठन बन गया है और लोग जन सुराज से जुड़ गए हैं वहां पर लोग मिलकर यह फैसला ले सकते हैं कि लोग चुनाव लड़ेंगे.आगे चुनावी रणनीतिकार ने बोला कि बिहार में जाति एक बड़ी सच्चाई है. हमने जो परिकल्पना जाति वाली अपने मन में बैठा ली है वो ठीक नहीं है. बिहार में जाति उतनी ही बड़ी सच्चाई है जितना कि उत्तर प्रदेश, गुजरात और कर्नाटक में है. हम और आप बस मान बैठें हैं कि बिहार में जाति ही एक सच्चाई है. दूसरी बात हर आदमी बिहार में जाति पर वोट कर रहा है, ये भी सच्चाई नहीं है. बिहार में हम में से कई लोग मानते हैं कि बीजेपी का वोट बिहार में नहीं है, लेकिन लोग मोदी के नाम से वोट देते हैं, तो मोदी की जाति के कितने लोग बिहार में रहते हैं? आज वो आदमी जो मोदी को मतदान दे रहा है वो मोदी की जाति को देखकर मतदान नहीं कर रहा है.