पीके ने बोला कि इमरजेंसी नहीं हुआ होता, जेपी के नेतृत्व में आंदोलन नहीं हुआ होता. सारे दल अपने मुद्दे भूलकर एक साथ समर्थन न करते तो क्या आपको लगता है कि दलों के एक साथ मिलने से इंदिरा जी हार जातीं?
आज के संदर्भ में जेपी या उनके समकक्ष नेता भी ढूंढना पड़ेगा. जनता से जुड़े मुद्दे भी ढूंढने पड़ेंगे.
ये दोनों चीज हों तो दलों के मिलने का फायदा होगा.आगे बीपी सिंह का नाम लेते हुए प्रशांत किशोर ने बोला कि उनके समय भी सारे दल एक साथ मिलकर आए और इन्होंने कांग्रेस की 400 से अधिक एमपी की सरकार को हरा दिया. उस दौरान विपक्ष के लिए मुद्दा बोफोर्स था, उसके नाम पर सब एक हुए. फिर दलों ने अपनी ताकत दिखाई, जनता ने बोफोर्स के नाम पर, भ्रष्टाचार के नाम पर मतदान दिया और सत्ता परिवर्तन हुआ.प्रशांत किशोर बोले- "मुझे नहीं लगता कि 15 दलों के नेता एक साथ बैठ गए और उसका प्रभाव देशव्यापी हो जाएगा. उस बैठक में ममता, लालू व अन्य एक साथ बैठे थे, उसका प्रभाव देश में कैसे होगा? बंगाल का वोटर तो देश के मुद्दे पर और बंगाल में जो सरकार कार्य कर रही है उसको ध्यान में रखते हुए मतदान करेगा. विपक्षी एकत्व के लोग मिलकर देशव्यापी कोई मुद्दा बना लें, नेरेटिव सेट कर लें और उस मुद्दे को लेकर तृणमूल की सरकार जमीन पर ताकत लगाए, तो लाभ हो सकता है."बता दें कि आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने बेंगलुरु में 17-18 जुलाई को होने वाली आगामी विपक्षी एकत्व की बैठक को काफी अहम बताया है. बोला है कि इस बैठक में कई चीजें तय हो जाएंगी.