अपराध के खबरें

जमीन को लेकर विवाद बन रहे अपराध के कारण, 1 वर्ष में 5 प्रतिशत बढ़े मामले,चौंका रहे NCRB के आंकड़े

संवाद 


हाल ही में एक खबर सामने आई थी कि बिहार के छपरा जिले में जमीन विवाद को लेकर एक व्यक्ति ने 5 लोगों को चाकू मार दिया था. ये पांचो एक ही परिवार के थे. इस घटना में 3 लोगों की मृत्यु हो गई और 2 गंभीर रूप से जख्मी हो गए.ऐसा ही एक मामला 12 अगस्त 2023 को सामने आया था. बिहार के बक्सर में जमीन विवाद को लेकर दो पक्षों में लड़ई हुई थी. उसके बाद मामला इतना तूल पकड़ा कि फायरिंग भी प्रारंभ हो गई. 
बिहार में जमीन को लेकर विवाद होना और उस विवाद के बीच अपने ही परिवार के लोगों की कत्ल कर देना कोई नई बात नहीं है. सालों से जमीन विवाद और इसके वजह से हो रहे अपराध को लेकर इस राज्य की बदनामी होती आई है.
लेकिन हैरानी तब होती है जब सरकार की तमाम कोशिशों और दावों के बाद भी इस राज्य में जमीन के मामले सुलझने के बजाय उलझते ही जा रहे हैं और यह हर वर्ष राज्य में बढ़ रहे अपराध का कारण बन रहा है.
दरअसल एनसीआरबी की एक रिपोर्ट के अनुकूल बिहार में 65 प्रतिशत अपराध के पीछे के कारण जमीन विवाद ही है. इसके अलावा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वर्ष 2022 में विधानसभा में पर्दाफाश किया था कि बिहार में कुल हत्याओं की 60 प्रतिशत हत्याएं जमीन विवाद के कारण ही होती है. 
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2021 की रिपोर्ट के अनुकूल बिहार में हर पांचवी कत्ल का कारण जमीन विवाद ही होता है. आंकड़े के अनुकूल वर्ष 2021 में बिहार में 1,081 हत्याएं हुई जिसमें से 635 हत्‍याएं जमीन या संपत्ति के वजह हुईं. जिसका मतलब कत्ल के 59% मामले सिर्फ जमीन या संपत्ति विवाद से जुड़े हैं. जमीन विवाद के कारण हो रहे अपराध के मामले में दूसरे स्थान पर है उत्तर प्रदेश. यहां वर्ष 2021 में 227 हत्याओं का कारण भूमी या संपत्ति विवाद था. वहीं 172 मामलों के साथ महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर है. 
देश भर के आंकड़ों पर नजर डालें तो एनसीआरबी के अनुकूल वर्ष 2021 में भारत में संपत्ति या भूमि विवाद के वजह कत्ल के कुल 2,488 मामले सामने आए थे.
अब एनसीआरबी के पिछले कुछ वर्षों के आंकड़ों पर नज़र डालें तो पता चलता है कि बिहार में भूमि या संपत्ति के विवाद में हत्याओं का एक समान चलन है. 

2020, 2019, 2018, और 2017 में, संपत्ति या जमीन से जुड़े विवादों के परिणामस्वरूप 815, 782, 1,016 और 939 हत्याएं हुईं.

जमीन विवाद और इसके कारण हो रही हत्याओं को रोकने के लिए बिहार सरकार की ओर से कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन NCRB के आंकड़ों को देखें तो वे सब नाकाफी साबित हो रहे हैं.
इन विवादों को सुलझाने के लिए वर्ष 2022 में नीतीश कुमार सरकार ने जमीन के सर्वे और सेटलमेंट का कार्य प्रारंभ करवाया था, जो कि वर्ष 2023 के आखिर तक पूरा हो जाने का वादा किया गया था. इस कदम के माध्यम जमीन के मालिकाना हक की पूरी जानकारी पता चल सकेगा. इस सर्वे की शुरुआत करते हुए सीएम नीतीश ने बोला था कि सर्वे-सेटलमेंट का कार्य पूरा होने के बाद इससे जुड़े विवाद के निपटारे में काफी सहायता मिलेगी. 
उसके अलावा इस विवाद से निपटने के लिए भूमि सुधार उपसमाहर्ता (डीसीएलआर) कोर्ट में ऑनलाइन शिकायत भी की जा सकती है. इस सुविधा का शुभारंभ 12 अगस्त 2023 को भूमि विवाद निराकरण अधिनियम 2009 (बीएलडीआरए) के तहत किया गया है. इसकी शुरुआत राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के मंत्री आलोक कुमार मेहता ने एक प्रोग्राम के दौरान किया. इस प्रोग्राम का आयोजन भू-अभिलेख और परिमाप निदेशालय ने पटना के शास्त्रीनगर स्थित राजस्व (सर्वे) प्रशिक्षण संस्थान में किया था. भूमि विवाद निराकरण अधिनियम 2009 (बीएलडीआरए) के तहत जमीन से जुड़े छोटे-मोटे झगड़े सुलझाने और जमीन के स्वामित्व (टाइटल डिसाइड) के निर्णय का अधिकार जैसे मामले हैंडल किए जा सकते हैं. बिहार में जमीन विवाद को सुलझाने के लिए राज्य सरकार ने अंचल स्तर पर सीओ (अंचलाधिकारी), अनुमंडल स्तर पर डीसीएलआर और जिला स्तर पर अपर समाहर्ता को जमीन से जुड़े विवादों के निपटारे की जिम्मेदारी सौंपी है. इसके आधार पर रैंकिंग की गई है कि किस जिले में कितने विवादों का निपटारा हो पाया है. 
साल 2022 के जून महीने में बिहार में तैनात किए गए कुल 534 अंचलों के अधिकारी के कामों का रिपोर्ट जारी किया गया. रिपोर्ट के अनुकूल जमीन विवादों को निपटाने के मामले में बिहार का रोहतास जिला सबसे पहले स्थान पर रहा है. जबकि टिकरी सबसे निचले पायदान पर रहा. रैंकिंग की बात करें तो पटना, मुजफ्फरपुर, सहरसा, मधेपुरा, खगड़िया, पश्चिम चंपारण, गया का प्रदर्शन खराब पाया गया. जबकि बांका जिला का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा है.
इस प्रश्न का जवाब देते हुए एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज, पटना में सहायक प्रोफेसर डॉ अविरल पांडे ने एबीपी से बातचीत में बोला कि बिहार में जमीन को लेकर विवाद होने का सबसे बड़ा कारण यहां कि सामाजिक गतिशीलता, आर्थिक पिछड़ेपन और बाढ़ के कारण भूगोल है.
प्रोफेसर आगे बोलते हैं कि बिहार में किसी भी परिवार के लिए जमीन अमूल्य संपत्ति है. यह उनकी सामाजिक पहचान की भावना से तो संबंधित है ही साथ साथ ही साथ कई जमीनों को पूर्वजों की निशानी के तौर पर देखा जाता है. इसलिए, परिवार के सदस्य अपने ही परिवार से बंटवारे के दौरान जमीन को लेकर लड़ते हैं.
बंटवारे के दौरान भी कई मामलों में देखा गया है कि वह सदस्य जो आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहा है वे पारिवारिक भूमि का ज्यादा हिस्सा चाहता है. यह सब परिवारों और समाज में संघर्ष की तरफ ले जाता है.
वहीं स्वतंत्र पत्रकार शशि शेखर ने एबीपी से बातचीत करते हुए बोला कि बिहार में जमीनी विवाद को लेकर जितने लंबित मामले हैं खंगालेंगे तो आपको बड़ी संख्या में प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत के आरोप वाले मामले देखने को मिल जाएंगे. कई मामलों में तो पटना हाई कोर्ट ने पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारियों के विरुद्ध कड़ी टिप्पणी की है. जानकारों का यह भी बोलना है कि किसी भी जिले के बड़े जमीनी सौदे बिना सफेदपोशों और प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत के संभव ही नहीं है.यहां तक की इस राज्य में अब अपराधियों तक ने भी अपने अपराध करने का पैटर्न को बदल दिया है. बिहार में पहले अपराधी अपहरण और कत्ल से पैसे कमाते थे लेकिन अब वे जमीन में निवेश कर रहे हैं. इसके लिए वह बाकायदा सिंडिकेट स्टाइल में कार्य कर रहे हैं. 
उन्होंने आगे बोला कि जानकार दबी जुबान में ही सही लेकिन बताते है कि बिहार के कई ऐसे नेता है (विभिन्न पार्टियों के) जिन पर जमीन सौदों को प्रभावित करने के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष इल्जाम लगते रहे हैं. मसलन, पटना का राजीव नगर पिछले वर्ष सुर्ख़ियों में था. एक मीडिया हाउस की जांच में पाया कि राजीव नगर के नेपाली नगर में जमीन विवाद का कारण सत्ता से जुड़े लोग, भू माफिया और बिहार राज्य आवास बोर्ड की मिलीभगत है. यहां एक-दूसरे की सहायता कर सरकारी जमीनों को बेचा गया, जहां भू-माफियाओं को राजनेताओं का संरक्षण मिला हुआ था और ये गैंग सरकारी जमीन पर कब्जा कर उसे बेचते रहे. 

إرسال تعليق

0 تعليقات
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

live