इस जाग्रत पीठ का इतिहास भक्त रहषु स्वामी और चेरो वंश के क्रूर राजा की कहानी से जुड़ा है. 1714 के पूर्व यहां चेरो वंश के राजा मनन सेन का साम्राज्य हुआ करता था. ऐसा माना जाता है कि इस क्रूर राजा के दबाव डालने पर भक्त रहषु स्वामी की आवाज पर मां भवानी कामरूप कामाख्या से चलकर थावे पहुंचीं. उनके थावे पहुंचने के साथ ही राजा मनन सिंह का महल खंडहर में तब्दील हो गया. भक्त रहषु के सिर से मां ने अपना कंगन युक्त हाथ प्रकट कर राजा को दर्शन दिया. देवी के दर्शन के साथ ही राजा मनन सेन का भी प्राणांत हो गया. इस घटना की जिक्र पर स्थानीय लोगों ने वहां देवी की पूजा प्रारंभ कर दी.
तब से यह स्थान जाग्रत पीठ के रूप में मान्य है.
एतिहासिक थावे स्थित दुर्गा मंदिर तीन तरफ से वन प्रदेशों से घिरा हुआ है. वन क्षेत्र से घिरे होने के कारण पूरा मंदिर परिसर रमणीय दिखता है. मंदिर में प्रवेश व निकास के लिए एक-एक द्वार है, जहां सुरक्षा की पुख्ता बंदोबस्त रहती है.
थावे दुर्गा मंदिर में सप्तमी के दिन होने वाली पूजा का खास महत्व है. इस पूजा में भाग लेने के लिए भक्त दूर-दूर से मंदिर में पहुंचते हैं. लगभग एक घंटे तक चलने वाली इस पूजा के बाद महाप्रसाद का वितरण किया जाता है. इसके प्रति लोगों में बड़ी आस्था है. जो नहीं पहुंच पाते, उनकी भी इच्छा यहां का प्रसाद ग्रहण करने की होती है.
यह मंदिर गोपालगंज से सीवान जाने वाले एनएच पर है. थावे जंक्शन के समीप देवी हॉल्ट भी है. इस रूट से आने वाली सभी पैसेंजर ट्रेनों का ठहराव होता है. शारदीय और वासंतिक नवरात्र के दिनों में सभी ट्रेनों का ठहराव देवी हॉल्ट पर होता है.
मुख्य पुजारी सुरेश पांडेय का बोलना है कि मंदिर का इतिहास तीन सौ वर्ष पुराना है, लेकिन देवी की पूजा आदिकाल से पूरी भक्ति और निष्ठा के साथ की जाती है. उनके मुताबिक मां भगवती यहां भक्त की पुकार पर प्रकट हुई थीं. यहां पूजा प्रार्थना करने से भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है.