गुप्ता ने बोला, “ भागलपुर के सुंदरवन में पक्षी निगरानी गतिविधियों के क्रम में, हमने हाल ही में ‘फाइलोस्कोपिडे’ परिवार के एक ‘वार्बलर’ को देखा.”
गुप्ता ने बताया, 'औसत समुद्र तल (एमएसएल) से 52 मीटर की ऊंचाई पर और बिहार में गंगा के मैदानी इलाकों में इस प्रजाति की मौजूदगी का पहला प्रामाणिक रिकॉर्ड है. इसलिए हम पक्षी की इस दुर्लभ प्रजाति कि यहां मौजूद से बहुत उत्साहित हैं.'
उन्होंने बोला, “यह पश्चिमी हिमालय, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में ऊंचाई पर प्रजनन करता है.
सर्दियों में, यह दक्षिणी भारत, खासकर पश्चिमी घाट और नीलगिरी में प्रवास करता है.'
वन अधिकारी ने बोला कि इससे पहले, इस प्रजाति को कभी-कभी गुजरात के सौराष्ट्र और मोरबी क्षेत्र, पन्ना और मेलघाट बाघ अभयारण्यों और रंगनाथिटु पक्षी अभयारण्य (कर्नाटक) में देखा गया था.मुख्य वन्यजीव वार्डन ने बोला, '‘टाइटलर्स लीफ वार्बलर’ को आखिरी बार इटावा (7 अप्रैल, 1879 को) और गोरखपुर (18 फरवरी, 1910) में वापसी प्रवास के दौरान देखा गया था.'
उन्होंने बताया कि बिहार, पूरे देश में बर्ड रिंगिंग स्टेशन वाला चौथा राज्य बन गया है जहां पक्षियों के प्रवास, उनकी मृत्यु दर, उनके क्षेत्र तथा व्यवहार आदि के अध्ययन के लिए उनके पैरों में छल्ले लगाए जाते हैं.गुप्ता ने बोला, 'बर्ड रिंगिंग एक उपयोगी अनुसंधान उपकरण है जिसका प्रयोग प्रवासी पक्षियों और उनकी आवाजाही के बारे में सूचना एकत्र करने के लिए किया जाता है, जिससे हमें उनकी आबादी पर नजर रखने में सहायता मिलती है.'