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पटना हाईकोर्ट में पहली बार हिंदी में सुनाया गया फैसला, जानिए क्या रही वजह

संवाद 

देश की न्यायिक अवस्था में आमतौर पर किसी भी केस से जुड़ा हुआ फैसला अंग्रेजी में ही सुनाया जाता है, लेकिन पटना हाईकोर्ट में पहली बार इस परंपरा को तोड़कर बुधवार को एक केस में फैसला हिंदी में सुनाया गया.

पटना हाई कोर्ट के न्यायाधीश डॉ अंशुमान ने एक केस से जुड़े मामले में हिंदी में फैसला सुना कर एक नई परंपरा की शुरुआत की. दरअसल, बुधवार को जस्टिस डॉक्टर अंशुमन की सिंगल बेंच में शराब बरामदगी की से जुड़े एक मामले में आरोपी विकास कुमार के जमानत याचिका पर सुनवाई हुई. 

याचिकाकर्ता की तरफ से वकील इंद्रदेव प्रसाद पैरवी कर रहे थे.

न्यायिक व्यवस्था में हिंदी को बढावा देने की पहल
बता दें कि, न्यायिक व्यवस्था में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए इंद्रदेव प्रसाद ने पहले भी देश के कई हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं डाली हैं और न्याय की व्यवस्था में हिंदी के इस्तेमाल के लिए काफी लंबे समय से लड़ाई लड़ते आ रहे हैं. 

पटना हाई कोर्ट में भी जब बुधवार को याचिकाकर्ता की तरफ से पैरवी कर रहे थे तो वह हिंदी में ही अपनी बात रख रहे थे. इस मामले में इंद्रदेव प्रसाद याचिकाकर्ता विकास कुमार को शराब से जुड़े एक मामले में गलत तरीके से पुलिस के द्वारा आरोपी बनाने को लेकर था.

जस्टिस डॉ. अंशुमन की कोर्ट में हिंदी में हुई बहस

जस्टिस डॉ. अंशुमन की कोर्ट में इंद्रदेव प्रसाद ने हिंदी में ही अपनी बात रखी और फिर बहस पूरी हुई. दिलचस्प बात यह है कि दोनों तरफ की दलील सुनने के बाद जब इस मामले में फैसला सुनाने का वक्त आया तो न्यायाधीश डॉ. अंशुमान ने इंद्रदेव प्रसाद से पूछा कि वह अपना फैसला अंग्रेजी में सुनाएं या फिर हिंदी में ? 

न्यायाधीश डॉ. अंशुमन की तरफ से हिंदी में फैसला सुनाने की पेशकश पर वकील इंद्रदेव प्रसाद तो पहले चौंक गए और फिर उन्होंने न्यायाधीश से अपील की कि अगर वह हिंदी में अपना फैसला सुनाएंगे तो देश के न्यायिक व्यवस्था में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए एक सार्थक पहल होगी.

न्यायाधीश ने हिंदी में सुनाया फैसला

न्यायाधीश डॉ.अंशुमान ने वकील इंद्रदेव प्रसाद की बात को मानते हुए फैसला हिंदी में सुनाया और आरोपी विकास कुमार को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया. 

इसी दौरान एक और दिलचस्प वाकया हुआ, क्योंकि आमतौर पर न्यायाधीश अपना फैसला अंग्रेजी में ही सुनाते हैं तो उनके फैसले को कोर्ट के स्टेनो अंग्रेजी में ही लिखा करते हैं मगर जब इस मामले में न्यायाधीश डॉ. अंशुमान ने हिंदी में फैसला सुनाना शुरू किया तो स्टेनो को भी अंग्रेजी में फैसला लिखने में दिक्कत हुई जिसके बाद हिंदी जानने वाले दूसरे स्टेनो को बुलाया गया और फिर फैसला पारित हुआ.

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