वन विभाग से लोग बिहार के अलग-अलग जिलों तक ले जाते हैं.
हेड प्रोफेसर डॉ. अजय चौधरी ने बताया कि एक बार की लागत से लगभग 100 वर्ष से भी ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है. बंजर या वैसी जमीन जहां अन्य तरह की खेती होने का अनुमान नहीं है वहां पर भी कई किस्म के बांस की खेती मुमकिन है. सनातन धर्म में बांस का काफी ज्यादा महत्व भी है.20 सालों से पेड़ पौधों पर शोध कर रहे पीटीसीएल के परियोजना निदेशक प्रोफेसर डॉ. अजय चौधरी ने बताया कि राष्ट्रीय बांस मिशन और राज्य बांस मिशन के अंतर्गत वन विभाग मीठे बांस के पौधे बड़े पैमाने पर लगवाएगा. किसानों को वन विभाग से यह 10 रुपये में मिलेगा और 3 साल बाद इन पौधों की फिर जांच-पड़ताल की जाएगी. यदि किसानों द्वारा लगाए गए 50% से अधिक पौधे बचे रहते हैं तो वन विभाग की तरफ से देखभाल के लिए प्रति पौधा 60 रुपये दिए जाएंगे.यह भी बोला कि बांस के पौधे की कीमत 10 रुपये भी वापस कर दिए जाएंगे. पर्यावरण की दृष्टिकोण से भी बांस काफी ज्यादा अच्छा होता है क्योंकि इसका पौधा सबसे अधिक तेजी से बढ़ता है जिस कारण से यह ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड अब्जॉर्ब करता है और ऑक्सीजन की मात्रा अधिक देता है. इस वजह से हमारे पर्यावरण को लाभ पहुंचता है. इसकी खेती से बिहार में उद्योग को भी बढ़ावा मिल सकता है. बांस का उपयोग पेपर इंडस्ट्री, फर्नीचर व इससे दैनिक जीवन में इस्तेमाल करने वाले सामान को भी बनाया जा सकता है.बताया गया कि बांस से एथेनॉल भी अधिक मात्रा में तैयार होता है. बैंबू मैन ने बताया कि खासकर पूरे बिहार में मीठे बांस की खेती होती है तो बिहार की अर्थव्यवस्था पूरी प्रकार से बदल जाएगी. मीठे बांस से अचार, चिप्स, कटलेट के अलावा कैंसर की दवाइयां भी तैयार की जा रही हैं. और बता दे कि खासकर बांस की कई प्रजातियों का प्रयोग चीन, ताइवान, सिंगापुर जैसे देशों में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. बांस को प्लास्टिक का सबसे बड़ा विकल्प माना जा रहा है.