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शास्त्र अनुकूल मनाया गया मां दुर्गा के छठे स्वरूप मां कात्यायनी पूजा। बेलतोरी,नवपत्रिका प्रवेश,कालरात्रि पूजा,निशा पूजा आज, पट खुलते ही भक्तों को होगा माता का भव्य स्वरूप का दर्शन।

पंकज झा शास्त्री 


 बहुत ही श्रद्धा और विश्वास के साथ हर जगह मनाया जा रहा है शारदीय नवरात्र। भक्त माता के पूजा अर्चना मे अपने तरफ से कोई भी त्रुटि नहीं रखना चाहते। माता के छठे स्वरूप माँ कात्यायनी की पूजा। एक बार महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की आराधना करते हुए जब कई वर्ष की कठिन तपस्या की तो उन्हें मां ने दर्शन दिए। साथ ही उनसे वरदान मांगने के लिए कहा। तब उन्होंने इच्छा जाहिर करते हुए कहा कि मां भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। मां भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली और पुत्री रूप में जन्म लिया। जिसके बाद उनका नाम कात्यानी पड़ा।मां कात्यानी का स्वरुप चमकीला और तेजमय है। इनकी चार भुजाएं हैं। मां कात्यानी नने अपने ऊपर वाले हाथओं में तलवार धारण करती हैं और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल रहता है। मां कात्यानी की पूजा करने से व्यक्ति को परम पद की प्राप्ति होती है साथ ही मोक्ष भी मिलता है।

नवरात्र की सप्तमी तिथि को माता का कालरात्रि का पूजन किया जाता है। पंडित पंकज झा शास्त्री कहते है ऐसे लोग जो किसी कृत्या प्रहार से पीड़ित हो एवं उन पर किसी अन्य तंत्र-मंत्र का प्रयोग हुआ हो, वे माता कालरात्रि की साधना कर समस्त कृत्याओं तथा शत्रुओं से निवृत्ति पा सकते हैं। दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि को महायोगिनी, महायोगीश्वरी कहा गया है। 
 यह देवी सभी प्रकार के रोगों की नाशक, सर्वत्र विजय दिलाने वाली, मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है। इस कालरात्रि की आराधना प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति को करना चाहिए। इस दिन देवी को गुड़ का भोग लगाकर उसे प्रसाद के रूप में खाना सेहत के लिए भी फायदेमंद है। यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है।
मां का यह स्वरूप सारी नकारात्मक ऊर्जा, भूत-प्रेत, दानव, पिशाच का क्षय कर देता है। लगभग प्रत्येक व्यक्ति मृत्यु के भय से भयभीत होता है और मां कालरात्रि की उपासना मानव को निर्भीक एवं निडर बनाती है। कई बार कुण्डली में प्रतिकूल ग्रहों द्वारा अनेक मृत्यु बाधाएं होती है इससे जातक डरा-सहमा महसूस करता है। परंतु मां कालरात्रि अग्नि, जल, शत्रु एवं जानवर आदि के भय से भी मुक्ति प्रदान करती है।
नाम के अनुरूप ही मां का स्वरूप अतिशय भयानक एवं उग्र है। भयानक स्वरूप रखने वाली मां कालरात्रि अपने भक्तों को शुभफल प्रदान करती है। घने अंधकार की तरह मां के केश गहरे काले रंग के है। त्रिनेत्र, बिखरे हुए बाल एवं प्रचंड स्वरूप में माँ दिखाई देती है। माँ के गले में विद्युत जैसी छटा देने वाली सफ़ेद माला दिखाई देती है।
मां कालरात्रि के चार हाथों में ऊपर उठा हुआ दाहिना हाथ वरमुद्रा में, नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बाएं तरफ के ऊपर के हाथ में खड़ग एवं नीचे के हाथ में कांटा है। मां कालरात्रि का वाहन गदर्भ है। मां ने वस्त्र स्वरूप में लाल वस्त्र और बाघ के चमड़े को धारण किया हुआ है।

महासप्तमी के दिन बेल तोरी का विशेष महत्व है पंडित पंकज झा शास्त्री का कहना है शास्त्रों के अनुसार इस बेल वृक्ष की जड़ों में मां गिरिजा, तने में मां महेश्वरी, इसकी शाखाओं में मां दक्षयायनी, बेल पत्र की पत्तियों में मां पार्वती, इसके फूलों में मां गौरी और बेल पत्र के फलों में मां कात्यायनी का वास हैं।इस् दिन ब्रम्हमुहूर्त मे भगवती के दरवार मे नवपत्रिका प्रवेश कराया जाता है। जहाँ षष्ठी तिथि को बेल बृक्ष जिसमे जोरा बेल हो निमंत्रन दिया जाता है,उस जगह भक्त सप्तमी के दिन ब्राह्मुहूर्त मे ढोल बाजे के साथ डोली लेकर जाते है बेल वृक्ष को पूजा आरती कर जोड़े बेल फल को नव पत्रिका के साथ भगवती स्वरूप मानकर डोली मे बिठाया जाता है और पूजा पंडाल तक लाकर पुनः द्वार पर महा स्नान और पूजन कर नवपत्रिका प्रवेश कराया जाता है। विद्वान पंडित द्वारा वैदिक मंत्र से नेत्र ज्योति माता को देकर भक्तों हेतु माता का दर्शन के लिए पट खोल दिया जाता है। कई लोग इस दिन महा सप्तमी ब्रत भी करते है। नवपत्रिका में जो नौ पत्ते उपयोग होते है, हर एक पेड़ का पत्ता अलग अलग देवी का रूप माना जाता है. नवरात्रि में नौ देवी की ही पूजा की जाती है. नौ पत्ती इस प्रकार है- केला, कच्वी, हल्दी, अनार, अशोक, मनका, धान, बिलवा एवं जौ.नवपत्रिका और नवापत्रिका को नौ तरह की पत्तियों ने मिलकर बनाई जाती है, और फिर इसका इस्तेमाल दुर्गा पूजा में होता है. दुर्गा पूजा महा सप्तमी के दिन इसका विशेष महत्व है का बहुत महत्व होता है, वे इसे बड़ी धूमधाम से मनाते है. नवपत्रिका पूजा को महा सप्तमी भी कहते है, नवा मतलब नौ एवं पत्रिका का संस्कृत में मतलब पत्ती होता है, इसलिए इसे नवपत्रिका कहा गया. इन नवपत्रिका को महा सप्तमी के दिन दुर्गा पंडाल में रखा जाता हैकेला – केला का पेड़ और उसकी पत्ती ब्राह्मणी को दर्शाते है.
कच्वी – कच्वी काली माता का प्रतिनिधित्व करती है. इसे कच्ची भी कहा जाता है.
हल्दी – हल्दी की पत्ती दुर्गा माता का प्रतिनिधित्व करती है.
जौ – ये कार्त्तिकी का प्रतिनिधित्व करती है.
बेल पत्र – वुड एप्पल या बिलवा शिव जी का प्रतिनिधित्व करता है, इसे बेल पत्र या विलवा भी कहते है.
अनार – अनार को दादीमा भी कहते है, ये रक्तदंतिका का प्रतिनिधित्व करती है.
अशोक – अशोक पेड़ की पत्ती सोकराहिता का करती है.
मनका – मनका जिसे अरूम भी कहते है, चामुंडा देवी का प्रतिनिधित्व करती है.
धान – धान लक्ष्मी का प्रतिनिधित्व करती है.

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