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हर्षोल्लास के साथ मनाया गया माता के पांचवे स्वरूप की पूजा

पंकज झा शास्त्री 
 नवरात्रि के पांचवें दिन मां दुर्गाजी के पांचवें स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा अर्चना बहुत ही धूमधाम से किया गया। घरों और मंदिरों मे तथा अन्य पूजा स्थलों मे लोग बहुत ही नियम निष्ठा से माँ दुर्गा के आराधना मे जुटे है। संध्या आरती मे भी लोग काफी संख्या मे भाग ले रहे है। भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता होने के कारण देवी के इस पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि पूजन के पांचवे दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। साधक का मन समस्त लौकिक, सांसारिक, मायिक बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासना मां स्कंद माता के स्वरूप में पूरी तरह तल्लीन होता है।
पंडित पंकज झा शास्त्री ने बताया शास्त्रानुसार सिंह पर सवार स्कन्दमातृस्वरूपणी देवी की चार भुजाएं हैं, जिसमें देवी अपनी ऊपर वाली दांयी भुजा में बाल कार्तिकेय को गोद में उठाए उठाए हुए हैं और नीचे वाली दांयी भुजा में कमल पुष्प लिए हुए हैं ऊपर वाली बाईं भुजा से इन्होने जगत तारण वरद मुद्रा बना रखी है व नीचे वाली बाईं भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है और ये कमल के आसान पर विराजमान रहती हैं इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है।

👉 माँ कात्यायनी पूजा,बेलनौती आज।

नवरात्रि में छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं। 
 इनकी चार भुजाएं हैं। दाईं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। मां के बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। इनका वाहन भी सिंह है। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इसलिए कहा जाता है कि इस देवी की उपासना करने से परम पद की प्राप्ति होती है।

बेलनौती आज:-

 जहाँ मां दुर्गा की प्रतिमा बनाकर पूजा होती है उस जगह षष्ठी तिथि को बेलनौती का रस्म पुरा किया जाता है।इस दिन माता दुर्गा के आगमन को लेकर बेल वृक्ष के निकट पूजा कर जोड़ा बेल में पीला कपड़ा बांधकर मां दुर्गेे काे आमंत्रण दिया जाता है। शारदीय नवरात्र के अवसर पर दुर्गा पूजा के छठे दिन शुक्रवार को अपराह्न श्रद्धालु मैया के आगमन को लेकर मैया की डोली लेकर धूमधाम से निमंत्रण देने बेल वृक्ष के पास पहुँचते है वहां बेल वृक्ष को पूजा जाता है। निमंत्रण देते हुए जोड़ा बेल को पीला धोती से लपेट दिया जाता है। पंडित पंकज झा शास्त्री बताते है कि पूजा और आरती के बाद मैया के जयकारे के साथ निमंत्रण का कार्यक्रम पूर्ण कर श्रद्धालुओं की टोली वापस माता के दरबार तक पहुँचता है। ऐसी मान्यता है कि बेल के पेड़ में जोड़ा बेल को ढूंढ कर उस बेल के पास डोली ले कर पहुंचते हैं। विधि विधान से मैया की पूजा आरती कर उस जोड़ा बेल में पीला कपड़ा बांधा जाता है। जो मैया के निमंत्रण का प्रतिक है। इस दौरान श्रद्धालु मैया के कार्यक्रम में गाजे बाजे व अपने घर के ढोलक, घंटी, झाल लेकर मैया की यात्रा में शामिल होते है। शुक्रवार को षष्ठी तिथि रात्रि 09:24 तक है और राहु काल दिन के 12:03 से रात्रि 08:43 तक नहीं रहेगा इस बिच बेलनौती का कार्यक्रम करना अति उत्तम होगा।

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