जन सुराज पदयात्रा के सूत्रधार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने मंगलवार (3 अक्टूबर) को जातिगत गणना पर नीतीश सरकार को घेरा है. उन्होंने बोला कि जो लोग जातीय गणना करवा लिए इनको समाज की बेहतरी से कोई लेना-देना नहीं है. जातिगत गणना को आखिरी दांव के रूप में खेला गया है ताकि समाज के लोगों को जातियों में बांटकर एक बार फिर किसी तरह चुनाव की नैया पार लग जाए. नीतीश कुमार 18 सालों से सत्ता में हैं पर अब क्यों जातीय गणना करवा रहे हैं? नीतीश कुमार को 18 सालों से याद नहीं आ रहा था? दूसरी बात, जातिगत गणना राज्य सरकार का विषय है ही नहीं.प्रशांत किशोर ने बताया कि जातियों की गणना मात्र से लोगों की स्थिति नहीं सुधरेगी. बिहार के 13 करोड़ लोग जातिय गणना के मुताबिक सबसे गरीब और पिछड़े हैं और ये सूचना सरकार के पास है. इसे क्यों नहीं सुधारते?
दलितों की गणना आजादी के बाद से हो रही है.
उसकी दशा आप क्यों नहीं सुधार रहे हैं? उनके लिए आपने क्या किया? मुसलमानों की गणना की हुई है उनकी स्थिति सुधर क्यों नहीं रही है? बिहार में आज दलितों के बाद मुसलमानों की स्थिति सबसे खराब है लेकिन कोई इस पर बात नहीं कर रहा है. समाज में कोई वर्ग सही मायने में पीछे छूट गया है और उसकी संख्या ज्यादा है. बिहार की सरकार जनता को उलझा रही है कि आधे लोग जतीय गणना के पक्ष में और आधे लोग लग जाएं जाति गणना के विपक्ष में. उसके बाद कोई इसकी जिक्र न करें कि बिहार में पढ़ाई हो रही है की नहीं, रोजगार मिल रहा है की नहीं. बता दे कि एक बार जाति में आग लगाकर अपनी रोटी सेंक कर फिर से एक बार मुख्यमंत्री बन जाए.