अब राज्य सरकार ने केंद्र के पाले में गेंद को डाल दिया है.
अगर नौवीं अनुसूची में बिहार आरक्षण बिल सम्मिलित हो जाता है तो फिर इसे कोई कोर्ट में चुनौती नहीं दे सकता है. कोर्ट भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता है. हालांकि अगर न्यायालय में चुनौती नहीं दी जाती है तो यह लागू रहेगा.राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों में आरक्षण की सीमा बढ़ाई गई लेकिन मामला जब कोर्ट में गया तो वह निरस्त हो गया. सिर्फ तमिलनाडु में ही 59% आरक्षण है. इसे कोर्ट ने निरस्त नहीं किया है क्योंकि तमिलनाडु 9वीं अनुसूची में सम्मिलित है.
सबसे पहले आसान और एक लाइन में बोला जाए तो यह आसान नहीं है. नौवीं अनुसूची में सम्मिलित करने के लिए कई प्रक्रियाएं होती हैं. तमिलनाडु में जवाहरलाल नेहरू के वक्त में ही नौंवी अनुसूची में सम्मिलित किया गया था. उस समय भी काफी विरोध हुआ था. उस समय 9वीं अनुसूची में सम्मिलित करने के लिए भूमि सुधार सहित 13 कानून जोड़ने पड़ते थे, लेकिन अब इसमें परिवर्तन किया गया है. अब नौंवी अनुसूची में सम्मिलित करने के लिए 284 कानून को जोड़ना पड़ेगा. संशोधन करने पड़ेंगे.अगर बिहार को नौवीं अनुसूची में सम्मिलित किया गया तो फिर कई राज इसके लिए आगे हो जाएंगे. और बता दे कि बिहार सरकार ने इसकी पहल तो की है लेकिन कहीं न कहीं इसे चुनावी राजनीति के रूप में देखा जा रहा है.