उस वक्त समिति मंदिर में प्रोग्राम भी हुआ था.
उन्होंने अररिया के सैकड़ों बेरोजगार को रोजगार से जोड़ा था. सुब्रत राय की माता के भतीजे और 82 वर्ष के अजय सेन गुप्ता बताते हैं कि साल 1999 में जब वो कारोबार शुरू करने के बाद पहली बार अररिया आए थे तो अररिया को दुल्हन की तरह सजाया गया था.सुब्रत राय के बारे में बताया कि वह बचपन में यहां घोड़ा गाड़ी तांगे पर चढ़ते थे, उस वक्त उनके लिए घोड़ा गाड़ी को सजाया गया था. उसी से उन्होंने शहर का भ्रमण किया था. अपने तमाम रिश्तेदारों के घर आए थे. 77 वर्ष के अशोक सेन गुप्ता उर्फ बादल दा बताते हैं कि 1999 में आए तो सुब्रत उनके पिताजी शक्तिभूषण दास और मां से मिलकर धोती एवं साड़ी दी. उस समय उनकी बिस्कुट की फैक्ट्री थी तो बादल दा से लडुआ बिस्कुट मांगा था.वहीं 80 वर्ष के सपन दास गुप्ता बोलते हैं कि बचपन में समिति मंदिर के बगल में गिल्ली-डंडा साथ खेलते थे. शहर के प्रसिद्ध काली मंदिर के साधक नानू बाबा भी उनके मित्रों में सम्मिलित हैं. अररिया को गोद लेकर विकास की नई गाथा लिखने की सोची थी पर नहीं हो सका था. आज यहां के दर्जनों परिवार उनके देहांत पर शोक जता रहे हैं. बुजुर्ग कुट्टू दा बताते हैं कि खेल के प्रति भी उनका गहरा लगाव था. अररिया में वे एक बड़ा स्टेडियम बनाना चाहते थे.