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द्वापरकालीन पौराणिक पटना के उलार्क सूर्य मंदिर की महत्व है अपार, यहां छठ पर्व में मांगी गई मन्नत होती है पूरी


संवाद 


बिहार के पटना जिले के पालीगंज अनुमंडल के दुल्हिन बाजार थाने इलाके के उल्लार धाम स्थित द्वापरकालीन पौराणिक उल्लार्क सूर्य मंदिर जोकि अब उल्लार सूर्य मंदिर के नाम से सुविख्यात है. यह विश्व विख्यात 12 सूर्य पीठों एवं अर्क स्थलीयों में से एक है. इस स्थल को अब उल्लारधाम सूर्य मंदिर भी बोलते हैं. ऐतिहासिक साक्ष्यों में कई पुस्तकों और ग्रंथो में इस स्थल का विवरण उपस्थित है. बोला जाता है कि द्वापरयुग में जब भगवान श्रीकृष्ण के जाम्बवती पुत्र राजा साम्ब को दुर्वासा ऋषि के श्राप से पूरे शरीर में भयंकर कुष्ठ व्याधि हुई थी जिससे मुक्ति के लिए साम्ब ने देश के 12 स्थानों पर भव्य सूर्य मंदिर (12 सूर्य पीठों ) का निर्माण करवाया था.जिसमें कोणार्क, मार्तंड मंदिर, मोढेरा सूर्य मंदिर, कटारमल मंदिर, देव सूर्य मंदिर, सूर्य मंदिर ग्वालियर मध्य्प्रदेश, सूर्य नारायण मंदिर आंध्रा प्रदेश, लोलार्क, पंडारक सूर्य मंदिर, ओगार्क देवार्क में से एक उल्लार्क सूर्य मंदिर है. जोकि तीसरा सबसे प्रमुख अर्क स्थली मंदिरो में एक माना जाता है.पौराणिक उल्लार्क सूर्य मंदिर का महत्व और महता दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है. उल्लार्क से अब उल्लार सूर्य धाम बन गया है. 

उल्लार गांव में इसकी स्थापना हुई थी इसलिए उल्लार धाम बन गया. 

वहीं, मुगल काल के क्रम में उल्लार्क सूर्य मंदिर को मुगल आक्रमणकारियों द्वारा कई बार कई ध्वस्त और विखंडित करने की कई पुस्तकों में जिक्र है, लेकिन यहां पर सूर्य उपासना की पूजा हमेशा चलती रही. बताया जाता है कि 19वीं सदी की शुरुआत में करीब 1920 के आस पास एक संत अलबेला बाबा उलार गांव पहुंचे और उस वक्त यह मंदिर काफी जीर्ण शीर्ण अवस्था में था. उन्होंने ही उस क्रम में वहां स्थानीय ग्रामीणों के मदद से मंदिर का जीर्णोद्धार की बीड़ा उठाया. ग्रामीणों के मदद से इस सूर्य मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया.वहीं, इस उल्लार धाम सूर्य नगरी को केंद्रीय पर्यटन स्थल सर्किट से जोड़ने की मांग को मान्यता मिलना बाकि है. जोकि काफी पुरानी यहां की मांग है. कई प्रयत्न भी किए गए लेकिन केंद्र सरकार इसे नहीं मान्यता दे रही है. वहीं, यहां के मान्यता के अनुकूल उल्लार धाम सूर्य मंदिर में जो भी भक्त कामना करते हैं सभी मनोवांछित मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है. इस मंदिर में कार्तिक और चैत्र मास में बड़े पैमाने पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु छठ पूजा के लिए आते हैं उनकी सभी मनोवांछित मनोकामनाएं पूर्ण होती है.उल्लार धाम सूर्य मंदिर परिसर में एक ऐतिहासिक बड़ा तलाब है. मंदिर से मजह कुछ ही गज की दूरी पर स्थित यह तालाब में ही स्नान कर छठ वर्ती भगवान भास्कर को अर्घ्य देती हैं. अर्घ्य देने के बाद वर्ती सूर्य मंदिर में छठी मईया और भगवान भास्कर की स्थापित प्रतिमा की पूजा करती हैं. इस तालाब को लेकर सूर्य मंदिर मठ महंत बाबा अवध बिहारी दास बताते हैं कि कुष्ठ व्याधि से ग्रसित जो भी छठवर्ती भक्तों निरोगी काया की कामना लिए मनोकामनाएं लेकर आस्था और विश्वास के साथ सूर्य उपासना करते हुए इस तालाब में स्नान करने के उपरांत अर्घ्य देते हैं, उनकी कुष्ठ व्याधि दूर हो जाती है. निरोग काया प्राप्त जल्द हो जाता है. यह विशेषता इस तालाब की है यहां पर कार्तिक और चैत्र मास में छठ पूजा के लिए करीब 4 से 5 लाख वर्तियों की अपार भीड़ उमड़ती है. अटूट आस्था और विश्वास का प्रतीक लोक आस्था महान पर्व छठ पूजा की अनोखी कहानी उल्लार धाम सूर्य मंदिर (उल्लार्क सूर्य ) की है. यहां से संबंधित कई किस्से कहानियां प्रचलित है. वहीं, शुक्रवार से नहाय खाय के साथ 4 दिवसीय लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा की शुरुआत हो चुकी है. आज दूसरे दिन महाप्रसाद के साथ खरना की परंपरा है. तीसरे दिन 19 नवंबर की शाम को अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अर्घ्य है. चौथे दिन 20 नवंबर को उदयगामी सूर्य की दूसरे अर्घ्य के साथ वर्ती पारण करेंगी और इसके साथ ही महाअनुष्ठान छठ पूजा का समाप्त हो जाएगा.

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