देव दिवाली का त्योहार कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन यानी दिवाली से ठीक 15 दिन बाद मनाया जाता है। वैसे तो देश में हर त्योहार सभी जगहों पर मनाया जाता है लेकिन देव दिवाली विशेषतौर पर वाराणसी में मनाई जाती है। इस साल यह 26 नवंबर को मनाई जा रही है।
देव दिवाली पर श्रद्धालु काशी के संत रविदास घाट से लेकर राजघाट तक लाखों दिए जलाते हैं साथ ही माता गंगा की पूजा की जाती है। इस त्योहार को मनाने के पीछे कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं।
क्यों मनाते हैं देव दिवाली
मान्यताओं के अनुसार इस दिन सभी देव धरती पर आकर गंगा मैया की पूजा करते हैं इसलिए इसे देव दिवाली भी कहा जाता है। वहीं इसके लिए एक अन्य कथा हैं जिसके अनुसार स्वयं भगवान शिव ने देवताओं का संकट दूर करने के लिए त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का वध किया था।
भगवान शिव ने जब राक्षस का संहार किया तो सभी देवताओं ने इस बात की खुशी जाहिर की और दीपोत्सव मनाया बस तभी से देव दिवाली हर साल मनाई जाती है।
गंगा स्नान का विशेष महत्व
देव दिवाली के लिए गंगा स्नान का बहुत महत्व होता है। मान्यताओं के अनुसार गंगा में इस दिन दीपदान करने से लंबी आयु और घर में सुख-शांति का वरदान मिलता है। ध्यान रहे जब आप दीप दान करें तो आपका मूंह पूरब दिशा की ओर होना चाहिए।
क्या हैं शुभ मुहूर्त
26 नवंबर को देव दीपावली वाले दिन शाम के समय यानी प्रदोष काल में 5 बजकर 8 मिनट से 7 बजकर 47 मिनट तक देव दीपावली मनाने का शुभ मुहूर्त है। इस दिन शाम के समय 11, 21, 51, 108 आटे के दीये बनाकर उनमें तेल डालें और किसी नदी के किनारे प्रज्वलित करके अर्पित करें।