आस्था व परंपरा की परिपाटी से जुड़े छपरा जिले के मशरख प्रखण्ड के अरना पंचायत मे घोघारी नदी के तट पर विगत डेढ़ वर्ष से भी ज्यादा समय से कार्तिक पूर्णिमा के दूसरे दिन लगने वाला बड़वाघाट मेला आधुनिकता की चकाचौंध के बाद भी अपनी पुरातन पहचान को कायम रखे हुए है जनश्रुतियों के अनुसार वनवास के दौरान भगवान राम ने यहां प्रवास किया था ऐसी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां पैर धोने से सभी पाप धुल जाते हैं इस परंपरा को आज भी लोग काम किए हुए है.
छपरा जिले के मशरख थाना अंर्तगत बरवाघाट में स्थापित ऐतिहासिक रामजानकी मंदिर 18वीं सदी में घोघारी नदी के तट पर बना है।इस ऐतिहासिक मंदिर के बारे में बहुत सारी जनश्रुतिया भी प्रचलित है.कार्तिक पूर्णिमा के दूसरे दिन यहां विशाल मेला लगता है. ऐसी कहानी प्रचलित है कि वनवास के दौरान भगवान राम यहां आए थे और खुद से इस मंदिर का निर्माण किया था. 1983 से पहले इस मंदिर के गुंबज में सोने का त्रिशूल लगा हुआ था जिसे डकैतों ने काट लिया.
उफनती नदी के मुहाने पर जब डकैत सीढ़ी लगाकर मंदिर के गुंबद से सोने का त्रिशूल काट रहे थे तब हजारों की संख्या में ग्रामीण चारों तरफ से डकैतो को घेरे हुए थे। ऊफनती नदी की धारा का फायदा उठाकर डकैत भाग निकले. 2015 में स्थानीय ग्रामीणों के सहयोग से इस मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ था. मंदिर के गुंबज पर पिछले वर्ष वज्रपात हुआ था आसपास के इलाके के लोग दैवीय चमत्कार मानते हैं. इस मेले का इंतजार आसपास के इलाके के लोगों को पूरे साल भर रहता है। आधुनिकता ने कहीं ना कहीं मिले के अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न भी लगाया है पहले के जमाने में इस मेले में लकड़ी के समान के लिए दूर-दूर से लोग आते थे। प्रशासनिक अनदेखी तथा बदले माहौल ने जरूर निराश किया है। वरिष्ठ पत्रकार तथा फिल्म संसार बोर्ड के सदस्य अरना निवासी अनूप नारायण सिंह ने बताया कि एक साजिश के तहत इस मेले को समाप्त करने की कोशिश भी की गई पर स्थानीय लोगों के सहयोग से इस परंपरा को कायम रखा गया है सारण जिले के प्रभारी मंत्री सुमित कुमार सिंह ने इस मेले को सांस्कृतिक महोत्सव के रूप में विकसित करने के लिए पत्र भी लिखा है।