सुशील मोदी ने बोला कि जेडीयू भले ही नीतीश कुमार की नाराजगी पर लीपापोती कर रहा है, लेकिन मुख्यमंत्री का नाराज होना स्वाभाविक है. उन्होंने डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का नाम लेते हुए बोला कि ये लोग उस बैठक में क्या केवल केजरीवाल और ममता दीदी के आगे सिर हिला कर हामी भरने या मौन समर्थन करने गए थे?नीतीश कुमार का नाम लेते हुए आगे बीजेपी सांसद ने बोला कि उनको कन्वीनर या प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की बात बार-बार बोली जा रही थी. पोस्टर लगवाए गए.
बयान दिलवाए गए और गठबंधन की शीर्ष बैठक में कोई नाम लेने वाला भी नहीं था.
सुशील मोदी ने बोला कि जिस तेजस्वी यादव को नीतीश कुमार ने दो बार डिप्टी सीएम बना कर औकात से "बड़ा नेता" बनाया और फिर अपना उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया, यदि उसने भी गठबंधन के संयोजक या प्रधानमंत्री-उम्मीदवार के रूप में बिहार से नीतीश कुमार का नाम नहीं लिया, तब नीतीश के रोष और क्षोभ की गंभीरता समझी जा सकती है.अपने बयान में बीजेपी नेता ने बोला कि जिस गठबंधन के लिए शुरुआती पहल नीतीश कुमार ने की, उसमें एक वर्ष के भीतर कोई संगठनात्मक प्रगति नहीं हुई. न सीट शेयरिंग पर कोई खाका बना, न साझा रैली हो पाई. बेंगलुरु के बाद दिल्ली में दूसरा मौका था जब नीतीश कुमार साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में सम्मिलित नहीं हुए. यह उनकी नाराजगी नहीं तो क्या है? ललन सिंह इस पर भी यह बोल कर पर्दा डालने की कोशिश कर रहे हैं कि नीतीश कुमार सोनिया गांधी और खड़गे से अनुमति लेकर निकले थे. गठबंधन की सब कमेटी की मीटिंग हुई भी, तो कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ. उससे भी नीतीश कुमार स्वयं को उपेक्षित महसूस करते रहे.