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क्या राम मंदिर के मुद्दे पर सीएम नीतीश हुए पस्त? 'इंडिया' से यू टर्न के लिए कई फैक्टर बना कारण


संवाद 


बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शनिवार को अपना त्यागपत्र दे सकते हैं और सूत्रों का बोलना है कि वह रविवार को आठवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले सकते हैं. सबसे बड़ा प्रश्न जो पूछा जा रहा है वह यह है कि नीतीश कुमार को 'इंडिया' ब्लॉक से एनडीए में आने के लिए किसने प्रेरित किया और इसका सरल उत्तर है अयोध्या में राम मंदिर की प्रतिष्ठा और जिस प्रकार से इसने देश में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में लहर पैदा की. सूत्रों ने बोला कि नीतीश कुमार 'इंडिया' ब्लॉक में असुरक्षित महसूस कर रहे थे, क्योंकि प्रशांत किशोर समेत कई राजनीतिक विशेषज्ञों ने बोला था कि अगर जेडीयू विपक्षी गठबंधन में रहेगा, तो उसे बिहार में पांच सीटें भी नहीं मिलेंगी.प्रशांत किशोर ने दावा किया था कि अगर जेडीयू पांच से ज्यादा सीटें जीतेगी, तो वह देश के सामने माफी मांगेंगे. साथ ही नीतीश कुमार को लगता है कि 'इंडिया' ब्लॉक में उनका भविष्य उज्ज्वल नहीं दिख रहा है. उन्होंने इंडिया ब्लॉक के गठन का नेतृत्व किया, लेकिन गठबंधन के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने में असफल रहे. चूंकि 'इंडिया' ब्लॉक के कई नेता नीतीश कुमार के पक्ष में नहीं थे, इसलिए उन्होंने उन्हें नजर अंदाज कर दिया. बेंगलुरु में दूसरी बैठक में यह बात साफ दिखी, जब नीतीश कुमार प्रेस ब्रीफिंग में सम्मिलित हुए बिना ही पटना लौट आए. मुंबई में तीसरी बैठक में भी उन्हें नजरअंदाज किया गया.इसके तुरंत बाद नीतीश कुमार ने अक्टूबर के पहले सप्ताह में सीपीआई की एक रैली में सीट बंटवारे में देरी और 'इंडिया' ब्लॉक के कामकाज पर ध्यान न देने के लिए सार्वजनिक रूप से कांग्रेस पार्टी को दोषी ठहराते हुए अपना गुस्सा दिखाया. उस वक्त कांग्रेस पार्टी मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के चुनावों में व्यस्त थी. 3 राज्यों में हार के बाद, नीतीश कुमार सीट बंटवारे के विषय पर कांग्रेस पर निरंतर आक्रमण कर रहे थे. साथ ही, नीतीश कुमार बिहार में आरजेडी और कांग्रेस पार्टी के साथ सहज नहीं थे. वह हमेशा सोचते हैं कि उनकी पार्टी का भविष्य महागठबंधन के बजाय एनडीए के भीतर अधिक उज्ज्वल है. नीतीश कुमार बीजेपी की सहायता से लंबे वक्त तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. 

वह अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान केंद्रीय मंत्री भी थे. 

इसके साथ ही तेजस्वी यादव के चार्टर्ड प्लेन से परिवार के साथ तिरूपति बालाजी जाने, आरजेडी कोटे के कैबिनेट मंत्रियों द्वारा उनसे सलाह किए बिना निर्णय नहीं लेने और तेजस्वी यादव द्वारा नीतीश कुमार की सार्वजनिक सभाओं को नजरअंदाज करने जैसे मुद्दों को लेकर भी बिहार के राजनीतिक गलियारों में जिक्र है. इसके अलावा, ऐसी अफवाहें भी थीं कि तेजस्वी यादव बिहार में सरकार बनाने के लिए जेडीयू को तोड़ सकते हैं. यही कारण हो सकता है कि नीतीश कुमार ने पार्टी की कमान अपने हाथ में ले ली और ललन सिंह को हटाकर जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए. राम मंदिर निर्माण के बाद बीजेपी के लिए समर्थन की लहर के साथ ये सभी मुद्दे मिलकर नीतीश कुमार की महागठबंधन से बाहर निकलने की इच्छा को जन्म दे सकते थे.नीतीश कुमार अपने गठबंधन सहयोगियों के विरुद्ध हो रहे हैं, यह तब स्पष्ट हो गया जब कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती के दिन, नीतीश कुमार ने एक सभा को संबोधित करते हुए वंशवाद की सियासत पर निशाना साधा. हालांकि उन्होंने किसी नेता का नाम नहीं लिया, लेकिन यह साफ था कि उनका निशाना लालू प्रसाद यादव और राहुल गांधी पर था. उन्होंने 2005 से पहले लालू-राबड़ी सरकार के दौरान जंगलराज की भी बात की. नीतीश कुमार ने यह भी दावा किया कि वह कर्पूरी ठाकुर के रास्ते पर चल रहे हैं और कर्पूरी ठाकुर की तरह अपने परिवार के किसी भी सदस्य को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं.नीतीश कुमार के बाद, वंशवादी राजनीति का जिक्र किया गया, लालू प्रसाद यादव की दूसरी बेटी रोहिणी आचार्य ने एक्स पर बिहार के मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुए तीन पोस्ट डाले. हालांकि रोहिणी आचार्य ने कुछ घंटों के बाद पोस्ट को हटा दिया, लेकिन यह उनके और नीतीश कुमार के बीच चल रहे झगड़े पर लालू परिवार के दृष्टिकोण को दिखाने के लिए काफी था. उन्होंने पहली पोस्ट में बोला, "कुछ लोग खुद को समाजवादी दिग्गज घोषित करते हैं, लेकिन उनकी विचारधारा हवा की तरह बदल जाती है.' हालांकि रोहिणी आचार्य ने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन यह स्पष्ट था कि उनका निशाना किसे था.दूसरे पोस्ट में रोहिणी आचार्य ने बोला, ''गुस्सा दिखाने से कोई सहायता नहीं मिलेगी, क्योंकि उनमें से कोई भी इतना योग्य नहीं है कि उनकी विरासत को आगे बढ़ा सके. उनके इरादे ठीक नहीं हैं.” तीसरे पोस्ट में उन्होंने बोला कि ''कुछ लोग अपनी कमियों पर आत्ममंथन नहीं करते और दूसरों पर कीचड़ उछालते हैं.'' इन पोस्ट के बाद गुस्से में दिख रहे नीतीश कुमार ने गुरुवार को कैबिनेट बैठक की अध्यक्षता की. 
रोहिणी आचार्य 15 मिनट तक कैबिनेट मीटिंग में रहीं और उन्होंने अपने भाई तेजस्वी यादव समेत आरजेडी के किसी भी नेता से वार्तालाप नहीं की. बाद में उन्‍होंने ने पोस्ट हटा दीं. तो, स्पष्ट रूप से महागठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं था और अयोध्या में राम मंदिर के अभिषेक के बाद देश भर में बीजेपी के लिए समर्थन की लहर ने नाखुश नीतीश कुमार को सीधे भगवा खेमे में धकेल दिया.

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