डॉ. चंद्रशेखर रामचरित मानस पर अनाप शनाप जिक्रबाजी करते थे. इसको नफरत फैलाने एवं समाज को बांटने वाला ग्रंथ बताते थे. देवी देवताओं पर भी टिप्पणी करते थे. राम मंदिर पर भी निरंतर जिक्रबाजी कर रहे थे. बयानों को लेकर सुर्खियों में थे. चंद्रशेखर को कंट्रोल में रखने के लिए नीतीश ने अपने करीबी आईएएस अधिकारी केके पाठक को शिक्षा विभाग का अपर मुख्य सचिव बनाया था. केके पाठक शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए एक के बाद एक नए निर्णय लेने लगे. शिक्षा मंत्री से राय भी नहीं लेते थे. अपनी अनदेखी से शिक्षा मंत्री अप्रसन्न हो गए थे और कई दिनों तक अपने दफ्तर नहीं आए थे.
आरजेडी व वाम दलों की तरफ से पाठक को हटाने की मांग की जा रही थी. राज्यपाल से भी विधान पार्षदों ने भेंट की थी. इसी बीच पाठक छुट्टी पर चले गए, लेकिन पाठक लौट आए हैं व चंद्रशेखर का ही विभाग बदल दिया गया है. चंद्रशेखर पर पाठक भारी पड़ गए.
भूमि सुधार एवं राजस्व मंत्री रहे आलोक मेहता ने अपने विभाग के कई अधिकारियों का ट्रांसफर पोस्टिंग किया था, जिस पर नीतीश ने पाबंदी लगा दी थी.
ट्रांसफर पोस्टिंग में गड़बड़ियों की शिकायत मिल रही थी. नीतीश के भागने, अप्रसन्न होने की खबरों के बीच लालू ने अब जाकर कार्रवाई की सहमति दी. ये भी बताता है कि कुछ होने को रोकने की कोशिश के तहत लालू की तरफ से अब यह किया गया होगा या फिर आईएएस पाठक को मनाने के लिए नीतीश की ओर से इधर लालू को बोला गया होगा. माहौल भाप कर लालू तुरंत तैयार हो गए होंगे. दरअसल, नीतीश के अप्रसन्न होने की बात भी सामने आ रही है क्योंकि 'इंडिया' गठबंधन में अब तक सीटों का बंटवारा नहीं हुआ है. नीतीश चाहते थे कि जल्द से जल्द हो जाए. नीतीश ने संयोजक बनने के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया था. जेडीयू के नेता चाहते हैं कि नीतीश को 'इंडिया' गठबंधन का पीएम कैंडिडेट बनाया जाए. उधर, सियासी गलियारों में जिक्र है कि लालू चाहते हैं कि नीतीश अब सीएम की कुर्सी छोड़ें और तेजस्वी को सीएम बनाएं. बोला तो यह भी जा रहा है कि इसके लिए नीतीश पर दबाव भी बनाया जा रहा था. जबकि नीतीश पहले ही कह चुके हैं कि 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव महागठबंधन तेजस्वी के नेतृत्व में लड़ेगा व तेजस्वी चेहरा होंगे.नीतीश ने ललन सिंह को जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से भी हटाया था क्योंकि वह लालू के बेहद करीबी हो गए थे. अटकलों का बाजार गर्म था कि वह जेडीयू को तोड़ तेजस्वी को सीएम बना सकते हैं, लेकिन लालू यादव और ललन ने हमेशा इन चर्चाओं को खारिज किया और ललन ने राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ा था यह बोलते हुए कि उनको लोकसभा चुनाव लड़ना है इसलिए उनको पद से मुक्त किया जाए. अपने क्षेत्र में वक्त नहीं दे पा रहे हैं क्योंकि उनके पास बड़ी जिम्मेवारी है. वहीं, एक साक्षत्कार के क्रम में जब गृहमंत्री अमित शाह से पूछा गया कि अगर कोई पुराने साथी, जो छोड़कर गए थे नीतीश कुमार आदि, ये आना चाहेंगे तो क्या उनके लिए रास्ते खुले हैं? इस प्रश्न के जवाब में अमित शाह ने बोला कि जो और तो... से सियासत में बात नहीं होती. किसी का प्रस्ताव होगा तो विचार किया जाएगा. अमित शाह के इस बयान के बाद बिहार की सियासत में भूचाल आ गया. कई तरह के कयास लगने लगे. इसी बीच 19 जनवरी को लालू-तेजस्वी ने सीएम आवास जाकर नीतीश से भेंट की थी. करीब 45 मिनट तक नीतीश के साथ बैठक की थी. शनिवार को बिहार में जो घटनाक्रम हुआ है ये सीधा आरजेडी का नीतीश के सामने सरेंडर लग रहा है. नीतीश बॉस हैं. उनकी ही चलेगी. यह साफ झलक गया. नीतीश किसी भी दबाव में नहीं रहेंगे भले उनके 43 विधायक हैं व आरजेडी के 79 हैं.