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टिकारी राज का अयोध्या में रसिक निवास मंदिर

संवाद 

 
यह मंदिर रामजन्म भूमि मंदिर से 2 किलोमीटर दूरी पर बना हुआ है. इस मंदिर को टिकारी राज नौ आना के महाराजा राम कृषण सिंह ने बनवाया है. यह चार मंजिला है और इसकी बनावट उत्कृष्ट कला का है।इस मंदिर का क्षेत्रफल 5 बीघा में था. मंदिर की बनावट महल जैसा है. मंदिर लखौरी ईंट में निर्मित है. इसमें करीब 50 कमरा है. मंदिर का एक गर्भ गृह है उसमें मूर्ति विराजमान है, उसके बाद एक बहुत बड़ा आगन है. आँगन के बाद एक बहुत बड़ा बैठका है, बैठका के चारों ओर कमरा बना हुआ है, उस मंदिर में महल जैसा नक्काशी, कीमती लकड़ी का दरवाज़ा और खिड़की लगे हुए है.राम सीता और हनुमान जी की अष्ट धातु की काफी वजनी मूर्ति विराजमान है. लोगों को मानना है की मूर्ति जागृत अवस्था में है. लोग ने भगवान के साक्षात् प्रत्यक्ष दर्शन भी किये है इस मंदिर के अलावा 12 बीघा का खेतिहर ज़मीन झाँसी जिला के तहरौली तहसील में है. आज के समय यह ज़मीन करोडो रूपया का है.महारानी विद्यावती देवी पत्नी महाराजा गोपाल शरण सिंह, टिकारी राज, टिकारी गया, करीब पांच वर्ष यहाँ ठहरी थी. वर्तमान में इस मंदिर का कानूनी अधिकार विद्यावती कुंवर के वंसज का है,श्री अनंत विधेश्वरम मंदिर, टिकारी राज, लक्ष्मण झूला, ऋषिकेश, उत्तराखण्डइस मंदिर के बनने से पहले, महारानी रसिक निवास, मंदिर और महल, राम घाट, अयोध्या में करीब पांच वर्ष अपना जीवन गुज़ारा, यही रह कर श्री अनंत विधेश्वरम मंदिर की नीव रखी और पूर्ण रूप से भव्य मंदिर बनवाया और श्री अनंत विधेश्वरममंदिर के बनने के बाद, वे अपने रसिक निवास, राम घाट, अयोध्या को छोड़ कर श्री अनंत विधेश्वरम मंदिर में स्थायी रूप निवास करने लगी थी.अपने प्रवास के दौरान महारानी विद्यावती इस रसिक निवास मंदिर का जीर्णोदार करा कर इसे भव्य मंदिर बना दी थी.राम कृषण सिंह टिकारी राज के महाराजा बनने के बाद उन्होंने अयोध्या के राम घाट पास एक बहुत बड़ा भूखंड को ख़रीदा. उन्होंने अयोध्या जा कर सन 1865 से चैत्र राम नवमी के दिन मंदिर की नीव रखी. टिकारी आ कर उन्होंने जनक पुर, गया के महंत श्री जनक कुमार शरण जी को टिकारी राज बुला कर उनके हाथ में 7000/- रूपया दे कर कर प्रार्थना पूर्वक कहा की आप इन रूपया को अयोध्या ले कर जाईये और वहां मंदिर बनवाना शुरू कीजिये और मै यहाँ से और रूपया भेजता रहूँगा और बड़े सम्मान के साथ महंत जी को अपने यहाँ से अयोध्या के लिए विदा किया. सन 1868 में मंदिर के पूर्ण निर्माण होने पर, महाराजा पुनः अयोध्या जा कर बड़े उत्साह और धूम धाम से सीता राम जी मूर्ति की स्थापना की उस समय मंदिर निर्माण और उत्सव के इस कार्य में लगभग २ लाख रूपया का खर्च हुआ था. मंदिर में मूर्ति स्थापना के समय इसके वार्षिक पूजा-सामग्री एवं रख रखाव के लिए सालाना 3600/ रूपया देने का वचन दिया और तत्काल इसका प्रबंध भी कर दिया.इसके अलावा महाराजा रामकृष्ण सिंह ने पश्चिम उत्तर प्रदेश के कुछ धर्म संस्थाओं को भी जन कल्याणकारी कार्य के लिए बहुत कुछ दान दिया था.टिकारी राज के महाराजा बनने से पूर्व महाराजा राम कृषण सिंह अयोध्या में रंग महल में करीब पांच वर्ष रह चुके थे, उन्हें अयोध्या के मिट्टी और संस्कृति से काफी लगाव था.महाराजा राम कृषण सिंह का जन्म #सारण जिला के रुसी गाँव में हुआ था. यह एकसरिया भूमिहार थे. इनका पिता का नाम बाबु कैलाश पति सिंह था और वह वहां के बड़े ज़मीनदार थे. इनकी ज़मीनदारी कई पीढ़ी से चली आ रही थी. राम कृषण सिंह के परदादा बाबु विश्वनाथ सिंह अपने इलाके के काफी धनवान और नामी व्यक्ति थे.कैलाश पति सिंह की बहन इन्द्रजीत कुंवर की विवाह टिकारी राज नौ आना के महाराजा हित नारायण सिंह के साथ हुई थी.राम कृषण सिंह ने अपने पुरोहित श्रीकांत पंडित से दीक्षा ले कर बहुत बड़े बड़े महात्माओं के साथ सत्संग किया और वहां से काशी अपने मामा और काशी महाराज ईश्वरी प्रसाद सिंह के यहाँ चले गए.काशी महाराज ईश्वरी प्रसाद सिंह की चचेरी बहन अश्वमेघ कुंवर की शादी टिकारी राज सात आना के महाराजा मोद नारायण सिंह के साथ हुआ था. इसलिय महाराजा रिश्ते में इनके मामा लगते थे.राम कृषण सिंह काशी से अयोध्या चले गए. अयोध्या के रंग महल के खान डेरा में रह कर राम नाम मन्त्र का साधना करने लगे और वहां धार्मिक कार्य में पूरा समय देने लगे.वे प्रतिदिन प्रातःकाल में नित्यक्रिया से निवृत हो कर राम नाम जप ध्यान लगाने के लिए बैठते तो शाम के चार बजे उठते थे. वहां से उठने के बाद वे चावल के तसमई बना कर खाते थे.इसी प्रकार राम मन्त्र जाप लगातार बारह दिन तक इसी प्रकार करते थे. बारह दिन के बाद इसे फिर से दोहराते थे.डेरा में खाली समय में वे श्री राघव दास महाराज के साथ प्रश्नोत्तर करके अपने मन के जिज्ञासा को शांत करते थे. एकदिन इन्होने अपने गुरु राघव महाराज से अपने घर द्वार त्यागने की इच्छा प्रकट की. राघव महाराज ने इन्हें काफी समझाया और कहा की आप उदास क्यों होते है. आप को राज योग्य है, आपको कहीं राज मिलेगा पर ये नहीं माने.इसी समय इनके पिताजी कैलाश पति सिंह का एक पत्र महंत राघव दास महाराज के पास आया की आप राम कृषण सिंह को जल्द से जल्द घर रुसी स्टेट, सारण, भेज दीजिये. अगर मेरा बेटा को आने में विलम्ब होगा तो हमलोग आपके पास आ जायेगें.पत्र को पढ़ कर राघव दास ने राम कृषण सिंह को समझा कर उनके घर रुसी, सारण भेज दिया. कुछ दिन घर पर रहने के बाद इनकी बुआ टिकारी की महारानी इन्द्रजीत कुंवर ने अपने आदमी को इनके पिताजी के पास भेज कर इन्हें टिकारी राज बुलवा लिया.
इस समय महाराजा हित नारायण सिंह अपने विदेशी पत्नी के साथ पटना के छज्जू बाग में रहते थे. इधर महारानी इन्द्रजीत कुंवर टिकारी राज के राजपाट अकेले चलाती थी. राज परिवार में कोई पुरुष सदस्य नहीं था. महारानी इन्द्रजीत कुंवर को कोई संतान नहीं थी, इसलिय बाद में सन 1862 में महारानी ने इनको पुत्र के रूप में लिखित रूप में स्वीकार कर लिया.महाराजा बनने के बाद सन 1865 के राम नवमी के समय उन्होंने अयोध्या में एक मंदिर के नीव रखे. यह मंदिर सन 1868 में बन कर तैयार हुआ. वे अयोध्या जा कर बड़े उत्साह से राम, लक्ष्मण और जानकी की मूर्ति की प्रतिष्ठापना किये और इस उत्सव में लाख रूपया का खर्च हुआ था। 

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